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कुंडली प्रकार

Accoridan

आप हमसे संपर्क करके अपने किसी भी प्रश्न को हल कर सकते हैं, अपनी सटीक तिथि, समय और जन्म स्थान बताकर कुंडली बना सकते हैं और अपनी कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं।

इस खंड में कुस कुंडली का संक्षेप में उल्लेख किया गया है

आभार

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होरा कुंडली

सिद्धांत

(1) चन्द्रमा यदि सूर्य की होरा में हो तो जातक स्त्री से पीड़ित, बिना भाई का, व्याधि से घिरा, शत्रुओं के वश में, धन-भूमि-सौम्य स्वभाव का होता है।

(2) चन्द्रमा की होरा में सूर्य हो तो जातक प्रधान, अपने प्रयत्नों से धन कमाने वाला, सुखी, स्त्री स्वभाव वाला, पत्नी से प्रेम करने वाला, अपने से शत्रुता रखने वाला होता है। भाई-बहन गुदा रोग से पीड़ित होंगे, पत्नी भी रोगी या रोगी होगी।

(3)यदि सूर्य अपनी होरा में हो तो जातक सत्यवादी, धार्मिक, बड़ों और ईश्वर के प्रति समर्पित, अपने दर पर धन कमाने वाला, बुद्धिमान, बहादुर, अपने वचन के प्रति सच्चा, गाने का शौकीन, मामलों में खुश और हंसमुख होता है। धन, पुत्र आदि का, रोग रहित।

(4) यदि चन्द्रमा अपनी होरा में हो तो जातक शांत, माता के प्रति समर्पित, शर्मीला, व्यवसायी, कृषि में रुचि रखने वाला, बुद्धिमान, छोटे-छोटे लाभ से भी संतुष्ट, गायन का शौकीन, स्त्रियों से प्रसन्न, दीर्घजीवी होता है।

(5) यदि सूर्य अपनी ही होरा में किसी अशुभ ग्रह (शनि/मंगल/राहु/केतु) के साथ हो तो जातक बलवान, ईर्ष्यालु, भाग्यशाली, प्रतिष्ठा पाने वाला, धनी, विश्वसनीय, सदाचारी, प्रिय होता है। राजा, पर किसी रोग के कारण संकटमोचक बनो।

(6) सूर्य की होरा में मंगल हो तो जातक बलवान, धनवान, संतानयुक्त होता है।

(7) बुध की सूर्य होरा में हो तो जातक बौद्धिक रूप से विक्षिप्त, आचरण में कमी, दरिद्र और दूसरों की निंदा करने वाला होगा।

(8) यदि बृहस्पति सूर्य की होरा में हो तो जातक बीमार होगा और उसका अंतिम काल परेशानियों से भरा होगा।

(9) सूर्य की होरा में शुक्र हो तो जातक अप्राप्य स्त्रियों का स्वामी, सुखों में लिप्त, बुरे कर्मों में लिप्त,

(10) सूर्य होरा में शनि हो तो जातक पराई स्त्रियों पर आश्रित होता है।

(11) चन्द्रमा अपनी होरा में हो तो जातक सुन्दर रूप वाला, उत्तम स्वभाव वाला, बुद्धिमान, स्त्रीप्रिय, गायन में रुचि रखने वाला, तीर्थयात्री, दीर्घजीवी होता है।

(12) चन्द्रमा की होरा में सूर्य हो तो जातक नेकदिल, स्वभाव से नीच होता है।

(13) चन्द्रमा की होरा में मंगल हो तो जातक की स्त्री (पुरुष) मृत्यु हो जाती है, अन्य स्त्री (पुरुष) में आसक्त रहेगी।

(14) चन्द्रमा की होरा में बुध हो तो जातक वाग्मिता, पत्नी सुशील, पति (पत्नी) परायण होता है।

(15) यदि चन्द्रमा की होरा में गुरु हो तो जातक को बहुत से खजाने, उज्ज्वल, प्रसिद्ध, उज्ज्वल प्रसिद्धि प्राप्त होगी।

(16) चंद्र की होरा में शुक्र हो तो जातक को पत्नी (पति) की प्राप्ति होती है, सुन्दर स्त्री की प्राप्ति होती है

(17) चन्द्रमा की होरा में शनि हो तो जातक दास-दासी, पुनर्विवाह करती है।

(18) यदि बृहस्पति अथवा शुक्र सूर्य की होरा में हों या इसके साथ हों तो जातक समृद्ध, सुखी, अधिकारी, नेता, शासक, पदधारी होगा।

(19) यदि होरा स्वामी लग्न में किसी पाप ग्रह के साथ युति कर रहा है, तो जातक बुरे स्वभाव का, धनी, बुरे आचरण वाला, बुरे कर्म करने वाला और कुल का विरोधी होगा।

द्रेशकान कुंडली


द्रेष्काण कुंडली


सिद्धांत

यदि जातक का प्रथम द्रेष्काण (00°-10°) में हो तो शिर का विचार करें।

2 और 12वें घर को आंखें समजे
3 और 11वें घर में कान समजे
4थे और 10वें घर की नाक समजे।
5वां और 9वां घर माथा समजे।
6ठा और 8वां घर दाढ़ी समजे।
7 भाव मुख जने।


यदि जातक का लग्न द्वितीय द्र्ष्काण (10°-20°) में हो तो गले का विचार करें।

2 और 12वां भाव को खंभा समजे।
3 और 11वां भाव को बाहू समजे।
4 और 19वां भाव को पीठ(पार्व) समजे।
5वां और 9वां भाव को दिल जाने।
6ठा और 8वां भाव को पेट समजे।
7 वां भाव को नाभि समजे


यदि जातक का लग्न द्वितीय द्रेष्काण (20°-30°) में हो तो जन:(कमर के नीचे) पर विचार करें।

2रा और 12वाँ भाव को लिंग और गुदा जाने।
3रा और 11वाँ भाव को अंडकोश जाने।
4था और 10वां साथल जाने।
5वां और 9वां भाव घुंटन जाने ।
6ठा और 8वां भाव को पिंड्डी जाने।
7 भाव को चरण जने।

नोट:- 2रे भाव को दायें और 12वें भाव को इस प्रकार समझें और अन्य भावों को भी जानें।

चतुर्थांश कुंडली

चतुर्थांश कुंडली


सिद्धांत

चतुर्थांश कुंडली

1. 00:00 से 07:30 प्रथम चतुर्थांश लग्न हो तब दूसरों का सम्मान और प्यार करने वाला होता है।

2. 07:31 अंश से 15:00 तक द्वितीय चतुर्थांश लग्न हो तब हसमुखा और मिलान के अनुसार होता है।

3. 15:01 अंश से 22:30 तृतीय चतुर्थांश लग्न हो तब कोमल स्वभाव और दूसरों का सम्मान करने वाला होता है।

4. 22:31 अंश से 30:00 तक चतुर्थ चतुर्थांश लग्न हो तो जातक दृढ़निश्चयी, साहसी और दिव्य होता है।

चतुर्थांश कुंडली के चतुर्थ भाव और चतुर्थेश से सभी प्रकार के सुख-समृद्धि का विचार किया जाता है ।

नियम 1. यदि लग्न लग्नेश D-4 में बली हो तो सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे जैसे माता का सुख, भूमि का सुख आदि।

नियम 2. चतुर्थेश चतुर्थ भाव D-4 में बली होने पर जमीन-जायदाद-वाहन का सुख मिलेगा।

नियम 3. D-4 का विचार वाहन के लिए किया जाता है। इस के लिए लग्न,लग्नेश,चतुर्थ भाव, चतुर्थेश और शुक्रग्रह का विचार करे यदी इसको बल मिलता हो तब वाहन सुख होता है ।

नियम 4. D-4 घर, जमीन-जायदाद के लिए लग्न, लग्नेश, चतुर्थ, चतुर्थेश और मंगल का विचार करना, सुख बली हो तो।

नियम 5 D-4 भाग्य के लिए लग्न, लग्नेश नवम, नवमेश और बृहस्पति का विचार करना ।

नियम 6. गुरु का धनेश और लाभेश के साथ D-4 में संबंध जांचना चाहिए

नियम 7. D-4 में राहु या केतु चतुर्थ भाव में हो तो भू-स्वामित्व में परेशानी होगी।

नियम 8. D-4 में 12वें, 9वें और 3 भावों का आपस में संबंध हो तो भाग्योदय जन्म स्थान से दूर होता है।

नियम 9. चतुर्थ भाव और चतुर्थेश D-4 में यदि दोनों चर राशि में हों तो उसका कोई स्थायी निवास नहीं होता।

नियम 10. D-4 में लग्न पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो सभी प्रकार के सुख प्राप्त होंगे

नियम 11. D-4 में द्वादशेश चतुर्थ भाव में हो तो दूसरे के मकान में (किराए पर) रहते हैं।

नियम 12. लग्नेश और चतुर्थेश त्रिकोण भाव में D-4 में हों तो माता के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों में परेशानी आएगी।

नियम 13. लग्नेश और चतुर्थेश D-4 में शुभ स्थिति में हों तो माता से संबंध अच्छे रहेंगे।

नियम 14. यदि चन्द्रमा D-4 में निर्बल हो और राहु लग्न या चतुर्थ भाव में हो तो धूर्त - विश्वासघाती जातक या जातिका जाने।

नियम 15. यदि बृहस्पति D -4 में नीच का हो, चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो, चतुर्थ भाव में बलहिन हो तो भाग्य कमजोर होगा।.

नियम 16. चतुर्थ भाव और चतुर्थेश D-4 में संबंध हो तो अनेक प्रोपर्टी का स्वामी जाने।

नियम 17. D-4 में गुरु का अनिवार्य चिंतन करे क्योकी गुरु सुख का कारक माना गया है

सप्तमांश कुंडली

सिद्धांत

(1)यदि सप्तमांश के लग्न या लग्न के स्वामी पर शुभ दृष्टि हो तो जातक कीर्तिवान, यशस्वी, मिलनसार, धनी, भाई-बहन भी प्रभावशाली होगा, उसके जन्म के बाद दूसरा भाई पैदा होगा।

(2) सप्तमांश का स्वामी यदि अपने स्थान में हो या उच्च का हो या अपने वर्ग में हो तो राज्य द्वारा उसकी पूजा की जाएगी, राज्य का हितैषी, सभी गतिविधियों में धन का लाभ उठाने वाला।

( 3)यदि किसी वर्ग के अन्तिम अंश में कोई ग्रह उच्चस्थ हो या स्वराशि में हो तो जातक वाहन आदि में निपुण, वीर, किन्तु भाई-बहनों से रहित होता है।

(4) सप्तमांश के तृतीय भाव में उच्च ग्रहों का प्रभाव हो तो छोटा भाई प्राप्त होगा।

(5)यदि सप्तमांश में तीसरे भाव में सूर्य के अलावा कोई ग्रह निच राशी मे है, तो वह अपने भाइयों की चिंता करेगा।

(6) सप्तमांश में तीसरे भाव में शुक्र या चंद्रमा हो तो छोटी बहन की प्राप्ति होगी।

(7 )यदि सप्तमांश लग्न में कोई पुरुष ग्रह हो और वह बली हो तो जातक के अधिक पुत्र होंगे।

(8) सप्तमांश लग्न का स्वामी यदि स्त्री ग्रह हो और बली हो तो जातक की पुत्रियां अधिक होती हैं।

नोट:- विषम लग्न हो और पुरुष ग्रह हो और वह ग्रह विषम राशि में बैठा हो तो पुत्र को ही समझएं, इसी प्रकार सम लग्न हो और स्त्री ग्रह समराशि में हो तो केवल बेटी को समझाएं।.

( 9)यदि सप्तमांश का स्वामी पाप ग्रह हो, पाप ग्रह के साथ पाप ग्रह की राशि में हो, तो संतान निम्न स्तर का कार्यकर्ता होगी।

(10) सप्तमांश का स्वामी उच्च राशि, मित्रराशी या स्वराशि में हो तो संतान उच्च की होगी और अच्छे कार्य करेगी।

(11)यदि सप्तमांश का स्वामी शुभ ग्रह से युक्त हो, शुभ ग्रह से युक्त हो, शुभ राशि में हो तो संतान अच्छी, सुंदर, समृद्ध और गुणी, धनी होगी।

(12)सप्तमांश का लग्न या सप्तमांश की राशि 6/8/12 में भाव में जाती है, संतान मे बाधाए होगी।

सप्तमांश मे विषमराशीओ (1/3/5/7/9/11) को सीधे क्रम में गिना जाता है और यदि कोई सम संख्या (2/4/6/8/12) है तो उल्टे क्रम में गिनें अर्थात,

1. -> 9वें भाव को 5वें भाव की व्याख्या करें।

2. -> 5वें घर को 9वें भाव के रूप में समझाएं।

3. -> 3वें भाव को 11वाभाव के रूप में समझाएं।

4. -> 11वें भाव को तीसरे भाव की व्याख्या करें.

फिर देखे की,
 यदि पंचम भाव की राशि समरशी में विपरीत क्रम में हो और सप्तमांश कुंडली में विस्मराशी में भी हो...

1. उच्च राशि का ग्रह हो तो प्रथम संतान पुत्र, नीच राशि हो तो पुत्री होती है।

2. उक्त नियम के अनुसार राशि के स्वामी सूर्य, मंगल, गुरु, राहु पुत्र तथा चन्द्र, शुक्र, बुध, शनि, केतु कन्याएँ हैं।

3. यदि वहां कोई ग्रह न हो तो पुत्र के लिए विषम राशि और लड़की के लिए समराशी ज्ञात करें।

नवमांश कुंडली

सिद्धांत

(1) नवमांश के स्वामी यदि....
      1.यदि मंगल हो तब जीवन साथी क्रूर, झगड़ालू और गुस्सैल स्वभाव का हो।
     2.सूर्य हो तब पति को मानने वाली लेकीन उग्रस्वभाव रहेगा।
      3.चन्द्रमा हो तब गोरा , शीतल, शांत।
     4. बुध हो तो चतुर, चित्रकार, बुद्धिमान, सुन्दर आकृति, शिल्पकला में निपुण।
     5.यदि बृहस्पति हो तब पित वर्ण का, ज्ञानी, सदाचारी, धर्म प्रेमी, सौम्य स्वभाव, पतिव्रता, तीर्थयात्री हो।
     6. यदि शुक्र हो तब सुंदर, चतुर, कामुक, विलासी, मुस्कुराता हुआ, सौंदर्य का स्वामी हो, तो पापी ग्रह हो तो व्यभिचारी।
     7.शनि हो तो अपनों का क्रूर स्वभाव और पति के गोत्र का विरोधी, श्याम, पति विरोधी।
     8. लग्न में राहु या केतु द्वेषी, क्रोधी और कलह पसंद करने वाला होता है।

(2) यदि नवांश के प्रथम भाव का स्वामी शुभ ग्रह हो और कुंडली में केंद्र या त्रिकोण या स्वराशि, लग्न या नवांश में बैठा हो तो स्त्री को पूर्ण सुख की प्राप्ति होती है।

(3) नवमांश स्वामी यदि 7 वे या 11 वे को उच्च राशि में हो तो स्त्रियों से दुर्लभ, अनेक प्रकार के लाभ, ससुराल पक्ष से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं।

(4) यदि नवमांश कुण्डली का स्वामी (प्रथम भाव का स्वामी) पाप ग्रह हो या पाप ग्रह से दृष्ट हो और 6/8/12 इन भावों में हो तो स्त्री सुख प्राप्त नहीं होगा।

(5) नवमांश कुंडली के सप्तम भाव से या चंद्रमा जिस राशि में है या सप्तमेश जिस राशि में है उससे पति-पत्नी की राशि जाने।

(6) नवमांश लग्न से पंचम भाव में हो तब...
    1. यदी सूर्य हो तब 1 पुत्र समजे
     2. चन्द्रमा हो तो 2 पुत्री
     3.मंगल हो तो 3 पुत्रર
     4. बुध हो तो 4 पुत्रરી
     5. बृहस्पति हो तो 5 पुत्रર
     6. शुक्र हो तो 6 पुत्री
      7.शुक्र उच्च का हो तो 7 पुत्री

(7) यदि नवांश कुण्डली में बारहवें भाव में पाप ग्रह हो और इस भाव में बारहवें भाव का स्वामी 3/6/9 हो, कोई भी ग्रह वक्री या मार्गी होकर 5वें भाव में हो तो उसकी पत्नी मृतक संतान देनेवाली होती है.

(8) एक व्यक्ति जो 5 वें नवमांश में या दृष्टि में है और यदि वह बलवान है, तो उसके पुत्र के रूप में पाप ग्रह (सूर्य/मंगल/बृहस्पति/राहु) और स्त्री ग्रह पुत्री के रूप में हैं (बुध/चंद्रमा/शुक्र/शनि/ केतु)

दशमांश कुंडली

दशमांश कुंडल

इस कुण्डली के द्वारा व्यापार, व्यापार, पद-प्रतिष्ठा, जीविका, मान-सम्मान जैसी बातों का विचार किया जाता है।

सिद्धांत

1. सबसे पहले D-1 और D-9 को देख रहे हैं। विशिष्ट निष्कर्षों के लिए D-10 का विश्लेषण कर रहे हैं

2.D-10 में प्रथम भाव में बली ग्रह उच्च पद, प्रतिष्ठा देता है।

3.D-1 के 10वें भाव में यदि उच्चग्रही, स्वग्रह, शुभग्रह या शुभग्रह ग्रह कीद्दष्टी हो तब व्यवसाय अच्छा होता है।

4. D-10 मे द्शम भाव स्वराशी,उचग्रही,शुभग्रह या शुभ ग्रह की द्दष्टी यदी हो तब अच्छी नोकरी या अच्छा व्यवसाय होगा।

5. D-10 मे दशमेश स्वग्रही,उच्चग्रही,शुभग्रही या शुभग्रहा की द्रष्टी हो तब नोकरी और व्यवसाय दोनो तरफ से आय होतीहै।

6. D-10 का प्रथमेश या प्रथमभाव बलशाली हो तब अच्छा व्यवसाय, मान,प्रतिष्ठा समाजा मे मिलती है।

7. D-10 का दशमेश यदी ६ – ८ -१२ वे इन त्रिक भाव मे या फीर त्रिक की राशीयो के स्वामी की युति,द्रष्टी या त्रिकेश दशम भाव मे हो तब आयमे मुश्केलीया ,व्यवसाय या नोकरी मे स्थानांतरण होता है।

8. D-10 मे यदी सुर्य बलशाली होकर केद्रमे बेठा हो तब सरकारी नोकरी से लाभ होता है। यदी बलहिन(निर्बल) या ६-८-१२ वे भाव मे हो तब परेशानिया भुगतनी पडती है।

9. D-10 मे शनि अपनीराशी(१०,११) या उच्च,मित्र,या केंद्र स्थानमे बलप्राप्त करके बेठा हो तब नोकरी, कारखाने का मालीक या बडा व्यवसाय करता है।

10. D-10 मे बुध अपनी राशी(३-६),उच्च,मित्र या केंद्र मे बलप्राप्तकरके बेठाहो तब बहुत ही अच्छा व्यवसाय करता है।

11. D-10 मे राजयोग होने पर उच्चपद प्राप्त करते है।

12.D-10 मे धनयोग होने से व्यवसाय या नोकरी से खुब धन कमाता है।

13.D-10 मे चंद्रमा स्वराशी(४),उच्च,मित्रक्षेत्री,मित्रग्रही की द्रष्टी,शुभ ग्रहो की युति या परिवर्तन योग बनरहा हो तब मन से करा हुवा कार्य उल्टा हो जाता है इसके कारण मन विचलीत रहे।

14.D-1 मे द्शम भाव बली या शुभ होने से नोकरे या व्यवसाय बढिया होता है।

15.D-10 मे दशमेश कई महा दशा या अंतर्दशामे लाभ मिलता है।

16.D-10 का चतुर्थभाव या चतुर्थेश स्वराशी,उच्च,मित्रक्षेत्री शुभग्रह से द्रष्ट या शुभ ग्रह से युति मे हो तब अपने व्यवसाय से खुश रहता है।

17.D-10 का ६ ठा भाव या छ्ठ्ठेशकी दशा या अंतर्दशा मे व्यवसाय – नोकरीमे स्पर्धा(कोम्पीटीशन) अधीक रहता है।

18.D-10ની 8 ઠ્ઠા ભાવ કે ભાવેશની દશા-અંતર્દશામા વ્યવસાય-નોકરીમા મજબુરી કે દબાવમા રહી ફેરબદલી કરે

19.D-10 के १२ वे भाव या व्ययेश की दशा या अंतर्दशामे दुसरी जगा या विदेशसे लाभ मिलता है।

20.D-10 के लग्नमे राहु होने से नोकरी या व्यसायमे मुश्केलीयो का अनुभव होता है।

21.D-10 के लग्न या लग्नेश अथवादशम या दशमेश कीसी भी तरह अशुभ हो तब व्यापार में घाटा होता है।

22.D-10 मे दशमेश यदी ....
     1. प्रथम भाव मे होने से ज्ञानी,प्रसिद्ध, धनवान
     2. दुसरे भाव मे हो तब व्यव्साय से धन मिलता है।
     3. तिसरे भाव मे हो तब ભાવ:-૩.હોય તો परिश्रमी और बार-बार पेशा परिवर्तन.
     4. चोथे भाव मे हो तब जन्म स्थलमे ही व्यवसाय मे उन्नति करता है।
     5. पंचम भावमे हो तब सूदखोरी से लाभ.
     6. ६ठे भाव मे हो तब बुद्धीशाली और बार-बार पेशा परिवर्तन ।
     7. सप्तम भाव मे हो तब व्यवसाय के लिए विदेश प्रवास करना पडता है।
     8. अष्टम भाव मे हो तब व्यापार में हमेशा परेशानी।
     9.नवम भाव मे हो तब व्यापार में सदैव उन्नति करता है
     10.दशम भाव मे हो तब बहुत ही बढिया व्यपार करता है।
     11.ग्यारवे भाव मे हो तब व्यपार पैसे कमाने के बहुत सारे तरीके
     12.बारवे भाव मे हो तब विदेश या जेल सेवा से आय हो।

23.D-10 का पहले पभाव मे जो ग्रह हो या द्रष्टी करा रहा हो या फीर दशमे व्यपार या नोकरी को जताता है।

सुर्य

इस ग्रह द्वारा चिकित्सक, चिकित्सा विभाग, प्रबंधन, राजनीति, सोना, वंशानुगत व्यवसाय, सरकारी नौकरी, डॉक्टर आदि विषयों के बारे में सोचा जाता है।

चंद्र

इस ग्रह द्वारा तरल, डेयरी, भोजन संबंधी गतिविधियों, यात्रा, आइसक्रीम, एनीमेशन आदि विषयों पर विचार किया जाता है।

मंगल

जमीन-जायदाद की दलाली, बिजली से संबंधित, तांबे से संबंधित, सिविल इंजीनियरिंग, बिजली, वास्तु, शल्य चिकित्सा, प्रबंधन, खिलाड़ी आदि विषयों पर इस ग्रह द्वारा विचार किया जाता है।

बुध

વ્યપારसंबंधित, लेखाकार, कंप्यूटर जॉब, लेखक, ज्योतिषी, एंकरिंग, सलाहकार, वकील, टेलीफोन, डाकघर, कूरियर, पत्रकार, बीमा कंपनी, कहानीकार आदि विषयों पर विचार इस ग्रह द्वारा किया जाता है।

गुरु

धार्मिक व्यवसाय, कर्मकांड, ज्योतिषी, अध्यापन, शिक्षक, स्टेशनरी, संसाधन, कपड़ा, फर्नीचर, लकड़ी का सामान, सलाहकार, न्यायपालिका आदि विषयों का विचार इस ग्रह द्वारा किया जाता है।

शुक्र

संगीत, गायन, वादन, नृत्य, अभिनय, सजावट, फैशन, डिजाइनर, पेंटिंग, ब्यूटीशियन, लेडीवियर, सौंदर्य प्रसाधन आदि विषयों का विचार इस ग्रह द्वारा किया जाता है।

शनि

मशीन से संबंधित, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, रासायनिक उत्पादन, पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल, कांच धातु, कोयला, पुरावशेष, पुरातत्व, लोहे से संबंधित, कड़ी मेहनत आदि विषयों पर इस ग्रह द्वारा विचार किया जाता है।

राहु

इस ग्रह द्वारा आकस्मिक लाभ, मशीनों से संबंधित, तामस वस्तु, जासूसी, कीट औषधि, जादू-टोना आदि विषयों पर विचार किया जाता है।

केतु

समाज सेवा, अध्यात्म, वैराग्य आदि विषयों पर यह ग्रह विचार करता है।

द्वादशांश कुंडली

સિદ્ધાંતો

द्वारदशांश कुंडली माता-पिता के लिए देखी जाती है।

नियम1. द्वारदशांश का प्रथमेश शुभ ग्रह हो तब जतक के माता-पिता का व्यवहार अच्छा होता है ।

नियम2. द्वारदशांश का प्रथमेश यदी पापग्रह हो तब जातक के माता-पिता का व्यवहार अच्छा नही होता है।

नियम 3. द्वारदशांश का प्रथमेश पुरुषग्रह होकर अपनी उच्चराशी,मित्रराशी या स्वराशी और जन्मा कुंडली मे केंद्र या त्रिकोण स्थान मे बेठा हो तब पिता का संपूर्ण सूख जातक को मिलता है।
     और जन्मा कुंडली मे केंद्र या त्रिकोण स्थान मे बेठा हो तब पिता का संपूर्ण सूख जातक को मिलता है।

नियम4.द्वारदशांश का प्रथमेश पुरुषग्रह होकरा अपनी निच्चराशी,शत्रुराशी या पापाग्रहकी राशी मे हो
     और जन्म कुंडलीमे ६-८ या फीर १२ वे भाव मे बेठा हो तब जातक को पिताके सुख कुस कमी का रहती है।

नियम 5.द्वारदशांश का प्रथमेश स्त्रीग्रह होकर अपनी उच्चराशी , मित्रराशी या फीर अपनी स्वरराशीमे हो
     और जन्म कुंडलीमे केंद्र या त्रिकोण स्थानमे बेठा हो तब माता का सुख जातका को अच्छा मिलता है।

નિયમ.6. नियम4.द्वारदशांश का प्रथमेश स्त्रीग्रह होकरा अपनी निच्चराशी,शत्रुराशी या पापाग्रहकी राशी मे हो
     और जन्म कुंडलीमे ६-८ या फीर १२ वे भाव मे बेठा हो तब जातक को माताके सुख कुस कमी का रहती है।

अंश: कला - अंश: कला फल के बारे मे
00:00 से 2:30 तक प्रथम द्वादशांश तो तब १८ वर्ष की आयु मे जल का भय रहता है।
2:31 से 05:00 तक द्दितिय द्दारदशांश हो तब ९ वे वर्ष की आयु मे सर्प या जहरीले जहरीले कीट का भय रहता है।
05:01 से 07:30 तक तिसरा द्दारदशांश हो तब १० वे वर्ष मे जहरीले भोजन का खतरा रहता है।
07:31 से 10:00 तक चतुर्थ द्दारदशांश हो तब ३२ वे वर्ष की आयु मे ह्रदय का रोग होने का भय रहता है।
10:01 से 12:30 तक पंचम द्दारदशांश हो तब २० वर्ष की आयु मे सांस संबंध से भय रहता है।
12:31 से 15:00 तक छठ्ठा द्दारदशांश हो तब २२ वे वर्ष की आयु मे अग्नि का भय रहता है।
15:01 से 17:30 तक सातव द्दारदशांश हो तब सभी प्रकार से श्रेष्ठ
17:31 से 20:00 तक आठवा द्दारदशांश हो तब ८ वे वर्ष की आयु मे कठिन रोगो का भय रहता है।
20:01 से 22:30 तक नव्वा द्दरदशांश हो तब ३२ वी आयु मे शस्त्र से या तिक्षण हथीयार से भय रहता है।
22:31 से 25:00 तक दशम द्दारदशांश हो ने से ३० वे वर्ष की आयु मे अग्नि कआ या बिजली का भय रहता है।
25:01 से 27:30 तक ग्यारवा द्दारदशांश हो तब ३१ वर्ष की आयु मे अग्नि कआ या बिजली का भय रहता है।
27:31 से 30:00 तक बारवा द्दारदशांश हो तब शत्रु से जहर का भय होता है।
નોંધ--- 1. यदी द्वादशांश का लग्न स्वामी त्रिक(६-८-१२) भाव मे होत और जन्म लग्न कुंडली से आठवे भाव मे पापग्रह की
       द्रष्टी हो अथवा आठवा भाव पापग्रह्से पिडित हो तब यह योग का फल अधिक होता है।

      2. यदी द्वादशांश का लग्न स्वामी त्रिक(६-८-१२) भाव न हो और जन्म लग्न कुंडली से आठवे भाव मे शुभग्रह की या शुभ ग्रह की
      द्रष्टी हो अथ्वा लग्न या आठवा भाव शुभग्रह के प्रभाव मे हो ता इस योगा के फल मे राहत मिलती है।
लग्नस्थ राशी फल के बारेमे आयु
1.मेष 18 18वें वर्ष में जल संकट होने की संभावना।   आयु 80 वर्ष की जाने  
2.वृषभ 9 वे वर्ष मे सर्प का भय   आयु 84 वर्ष की जाने  
3.मिथुन 10 वे वर्ष मे बुखार का भय   आयु 86 वर्ष की जाने  
4.कर्क 32 वे वर्ष मे राजरोग भय   आयु 66 वर्ष की जाने  
5.सिंह 20 वे वर्ष ने रक्त विकार का भय   आयु 85 वर्ष की जाने  
6. कन्या 22 वे वर्ष मे अग्नि का भय   आयु 66 वर्ष की जाने  
7.तुला 28 वे वर्ष मे जलोदर बिमारी का भय   आयु 50 वर्ष की जाने  
8.वृश्विक 30 वे वर्ष मे वायु विकार का भय   आयु 17 वर्ष की जाने  
9.घनु 32 वे वर्ष मे शस्त्र या वाहन का भय   आयु 99 वर्ष की जाने  
10.मकर 30 वे वर्सः मे जल या वायु भय   आयु 66 वर्ष की जाने  
11.कुंभ 30 वे वर्ष मे जल का भय   આયુ 50 વર્ષ .જાણવી  
12.मिन 29 वे वर्ष मे वाहन या किसी मशिन का भय   आयु 100 वर्ष की जाने  
नोंट :- उपोरोक्त यदी मारशेक की दशा या अंतर्दशा हो तब बहुत खतनाक जानिए

शोडशांश कुंडली

शोडशांश कुंडली

इस कुण्डली के माध्यम से भौतिक सुखों का विचार किया जाता है

इस कुंडली में शुक्र महाराज को मुख्य शासक माना गया है

सिद्धांत

1.लग्न कुंडली और षोडशांश प्रथमेश का बल जांचना चाहिए

2. लग्न कुण्डली और षोडशांश कुण्डली में शुक्र के बल की जाँच करे, के लिए 6, 8, 12 वे शुक्र अशुभ प्रभाव में नहीं होना चाहिए.

3. दोनो कुंडलीयो मे लग्न बलशाली होना बहुत ही शुभ होता है।

4. दोनों के लाभ स्थान की स्थिति की जाँच करें।

5.लग्न कुंडली और षोडशांश के प्रथमेश का संबंध चतुर्थ भाव या चतुर्थेश के साथ होना उत्तम होता है।.

6. षोडशांश मे मंगल ६ठे,शनि ८ वे, शुक्र १२ वे शुभ माने गये है।


चतुर्विशांश कुण्डली

इस कुंडली के माध्यम से जातक की शिक्षा का विचार किया जाता है

सिद्धांत

1. चौतुर्थ भाव या चतुर्थेश अथवा पंचमभव या पंचमेश अनुकूल(शुभ) प्रभाव में उच्च शिक्षा का होता है।

2.चतुर्थ भाव या चतुर्थेश अथवा पंचमेश या पंचमभाव 6-8-12 वे या फीर निच राशी मी या पाप (अशुभ) प्रभावमे रहेने से शिक्षामे बाधाए आती है।

3. लग्न अथ्वा लग्नेश यदी बलशाली हो तब शिक्षा अच्छी होती है।

4.पंचम भाव या पंचमेश यदी बलशाली हो तब शिक्षा अच्छी होती है।

5.इस वर्ग कुंडलेमे जोभी ग्रह बलशाली होगा वह शिक्षा के लिए विषयवस्तु को अपनायेगा।

6. इस वर्ग कुण्डलीमे कोइ भी ग्रह बलशाली न हो तब लग्न /लग्नेश पर प्रभाव डालनेवाला ग्रह शिक्षा के लिए विषयवस्तु को अपनायेगा।

7.गुरु का प्रभाव नवम भाव या नवमेश पर हो तब आविष्कार करता है।

8. पंचा भाव या पंचमेश भी शिक्षा के विषयोको दर्शाता है।

9. पंचमभाव या पंचमेश पर पापग्रह का प्रभाव तकनिकी विषयो को दर्शाता है।

10. पंचमभा या पंचमेश पर शुभग्रह का प्रभाव तकनिकी विषयो को दर्शाता है।

11. पंचमभाव और नवमभा यह दोनो बलशाली हो और शुभ ग्रह के प्रभाव मे हो तब उच्च शिक्षा मिलती है।

12. पंचम भा या पंचमेश भी शिक्षा के विषयो को दर्शाता है।

13.


-इस वर्गकुंडलीमे प्रथमेश का संबंध 3से भाव के साथ हो तब छोटी मुसाफरी करवाता है।


- इस वर्गकुंडलीमे प्रथमेश का संबंध 9 वे भाव के साथ हो तब बडी या लंबी मुसाफरी करवाता है।


- इस वर्गकुंडलीमे प्रथमेश का संबंध 12 वे भाव के साथ हो तब विदेश(दूसरे देश)की मुसाफरी करवाता है।


इस के उपरांत ...
*चंद्रमा= मनका कारक है
*मंगल = महेनत का कारक है
*बुध= स्मरण शक्ति का कारक है।
* गुरु = विवेक बुद्धीका कारक है।
* शनि = गहन शोध कारक
इसी लिए इन बातो का विचार करना चाहिए

14. इस कुंडलीमे प्रथमभाव या पंचम भाव यदी राहु या केतु के प्रभाव मे हो तब शिक्षा अच्छी नही मिलती
शुभ द्रष्टी हो तब अच्छा होता है।