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फलादेश सिद्धांत

Accoridan

इस लेख मै फलित ज्योतिष के कुस सिद्धांतो के बारे मै लिखा गया है । जेसे गत जन्म के बारे मै, स्वासथ्य,,व्यक्ति की रुची, सरकारी नोकरी, शेर बाजार,बाजार,व्यक्ति का चरित्र,चरित्र,व्यक्ति का मनोबल,मनोबल,विवाह ,प्रेम विवाह आदी के बारे मै यहा प्रस्तुत किया गया है । जो वांचक को उपयोगी होगा ।

आप हमसे संपर्क करके अपने किसी भी प्रश्न को हल कर सकते हैं, अपनी सटीक तिथि, समय और जन्म स्थान बताकर कुंडली बना सकते हैं और अपनी कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं।

आभार

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ग्रहाधीन दुनिय

ग्रहाधीन दुनिया

1. यदि जातक की जन्म कुंडली में चार या अधिक ग्रह उच्च या स्वग्राही होंने पर श्रेष्ठ कुल का होता है।
2. लग्नमें उच्च या स्वग्राही चंद्र हो तो व्यापारी और विवेकीशील रहा होगा ।
3. यदि गुरु उच्च का हो या उसकी दृष्टि लग्न (5,7,9) पर पड़ती हो, तो धर्मात्मा, सरगुणवान रहा होगा।
4. यदि सूर्य 6 या 8 या 12 या तुला राशि में हो तो पापी - भ्रष्ट जीवन जे करा रहा होगा । 5. यदि शुक्र लग्न में या सप्तममें हो तो वह राजा जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति या मंत्री को जान लें।
6. लग्न या 4 या 7 में भाव में शनि रहने पर गतजन्म में हिन् कृत्य करने वाला पापी जानना चाहिए
7. यदि चंद्र कुंडली में चार या अधिक ग्रह नीच होने पर गतजन्म में आत्महत्या की होगी ऐसा जानना चाहिए ।
8. मंगल 7/6/10 भाव में हो तो गतजन्म में बहुत गुस्सैल होगा ऐसा जानना चाहिए ।
9. बृहस्पति शुभ ग्रहों का हो या बृहस्पति 5 या 9 में हो तो वित्रागी होगा ऐसा जानना चाहिए ।
10.11वे भावमे सूर्य , 5 वे भावमे गुरू एवं 12 वे भावमे शुक्र रहनेपर गतजन्म में जातक साधू एवं संतजानकी सेवा करेनावाला पुण्यात्मा जानना चाहिए।

भविष्य

1.12 वे भाव में शनि,केतु या राहु हो और अष्टमेश के साथ 12 वे भाव हो या अष्टमेश षष्ठ स्थानसे देख रहा हो तो वह दुर्गति को प्राप्त होता है 2. कुन्डलीमे कही पारा भी गुरु उच्चस्थ रहनेपर मृत्युक की प्रक्रिया उच्च कोटीकी होती है।
3. 11 वे भाव में सूर्य +चंद्र और 9 वे भावमे शनि एवं 8 वे राहु रहेनापर मोक्षकी प्राप्ति जाननी चाहिए।
4. 8 वे भाव पर शनि की दृष्टी और 8 वे मकर या कुम्भ राशि होने पर योगसाधक बनकर विष्णुलोक को प्राप्त करने वाला जानना चाहिए।
5. 8 वे भाव में शुक्र हो और उस पर गुरुकी दृष्टी होने पर वह जातक वैश्य कुल को प्राप्त करनेवाला जानना चाहिए।
6. 8 वे भाव में राहु रहने पर जातक को पुण्यशाली बनाकर राजवंश में जाने वाला जानना चाहिए।
7. लग्न में गुरु+चंद्र और उच्च का शनि 4 भावमे एवं उच्च मंगल 10 भाव में रहने पर जातक मान सन्मान के साथ ब्रह्मलीं को प्राप्त करता है।

स्वास्थ्य विचार

स्वास्थ्य विचार


स्वास्थ्य की जानकारी


1.जन्म कुन्डलीमे 6 स्थान रोग स्थान कहलाता ह। इस स्थान के कारक (शनि/मंगल/केतु) ह। इस भाव में रहनेवाली राशि,षष्ठेश, इस भावमे रहनेवाला ग्रह इन सभी बातो से रोग के बारेमे सोचा जाता ह।
2. राहु जिसभी भाव में हो या जिस भाव पर वह दृष्टी करता है उस भावके जो रोग बताए गए हो उसे कभी विचार होता ह।
3. कोई भी ग्रह जब निर्बल (कमजोर) होता है तो उस ग्रह से होने वाले रोगो के बारेमे विचार करना चाहिए।


सिद्धांतों


1. लग्नेश या सूर्य उचस्थ हो या स्वग्रही हो तो जातक निरोगी रहता ह।
2.6 स्थानका स्वामी उच्च या स्वग्रही रहनेपर रोगो की वृद्धि होती ह।
3.कुंडली में सूर्य जितना बलशाली होगा उतनी रोगो के सामने लड़ने की ताकत होगी।
4.जिस स्थानका स्वामी जितना बलशाली होगा उतना फल अच्छा मिलता यह।
5.मेष/कर्क/तुला/ मकर लग्न होने पर कई बार रोग होते है ।
6.वृषभ/सिंह/वृश्विक/कुम्भ लग्न होने पर रोग कभी भी पीछा नहीं छोड़ता है ।
7.मिथुन/कन्या/धन/मीन यह लग्न होने पर एकही रोग बारमबार होते रहते ह।
8.यदि रोगेश (छठ्ठे के स्वामी) शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रह की दृष्टी होने पर रोग जल्द से मिट जाता है।


ग्रहों की भूमिका (यदि रोगेश हो तो)


1. सूर्य (वर्ष 21 में):-

सीने में दर्द, नेत्र रोग, रक्त रोग, मस्तिष्क दर्द, थायरॉयड ग्रंथि, हीट स्ट्रोक, बुखार दुर्बलता, तंत्रिका दुर्बलता, नेत्र दुर्बलता, सिर दर्द, हृदय, फेफड़े के रोग माने जाते हैं।

2. चंद्रमा (वर्ष 22 में):-

मानसिक बीमारी, अस्थिरता, आक्षेप, सर्दी-खांसी, दस्त-उल्टी, ट्यूमर, नेत्र रोग, रक्त विकार, खराब पाचन, गर्भाशय, कमजोर मूड

3. मंगल (वर्ष 28 में):-

पित्त दर्द, रक्तस्राव, पीलिया, टाइफाइड, मांसपेशियों में दर्द, घाव, नाराज़गी, बुखार, जिगर की समस्याएं, शक्ति की कमी

4. बुध (वर्ष 32 में):-

त्वचाविज्ञान, गूंगापन, बहरापन, खांसी का दर्द, कुष्ठ रोग, मानसिक बीमारी, नाक संबंधी समस्याएं, तंत्रिका की कमजोरी, कान की बीमारी, मूत्र मार्ग में दर्द, बोलने में समस्या

5. बृहस्पति (वर्ष 16/40 में):-

बीपी की समस्या, मधुमेह, दंत रोग, रक्त वाहिका की समस्याएं, जिगर में दर्द, आंतों की समस्याएं, गैस, फोड़े, खराब पाचन, यकृत की समस्याएं

6. शुक्र (वर्ष 25 में):-

गुर्दे की समस्याएं, गुर्दे का दर्द, आवधिक रोग, पैराथायरायड, टॉन्सिलिटिस, जननांग रोग, धातु अपशिष्ट, मुंह में दर्द, आंखों में कमजोरी, जननांग की कमजोरी,

7. शनि (वर्ष 37 में):-

बहरापन, पेट फूलना, पेट फूलना, अनिद्रा, पागलपन, दांत दर्द, दमा, कैंसर, टीबी, नाखून की समस्या,

8. राहु (वर्ष 42 में) केतु (वर्ष 49 में):-

तीव्र दर्द, पेट फूलना, कैंसर, जिल्द की सूजन, पागलपन, एक्जिमा, खसरा, चेचक, चेचक, चेचक



राशीओ की भूमिका


1.: मेष -

मस्तिष्क की समस्याएं, सिरदर्द, माइग्रेन, आग लगने का डर, गिरना, जानवरों का डर

2.: वृष:-

ट्यूमर, आंखों में दर्द, जीभ की समस्या, सुन्नता, गूंगापन, बहरापन, कब्ज, फोड़े, पीरियड,

3. मिथुन :-

सीने में दर्द, सांस की बीमारी, हाथ का दर्द, कंधे का दर्द

4. कर्क :-

हृदय रोग, गैस्ट्रिक रोग, कैंसर, फेफड़े की बीमारी, अपच, जलोदर,

5. सिंह :-

पेट दर्द, सीने में दर्द, दिमाग का दर्द, रीढ़ की हड्डी में दर्द, शारीरिक परेशानी, नेत्र रोग,

6. कन्या:-

गुर्दे का दर्द, पेचिश, हैजा, दस्त, कब्ज, आंत्र दर्द, टाइफाइड, ट्यूमर

7. तुला:-

पथरी, गुर्दे की समस्या, मूत्र मार्ग की समस्या, जिल्द की सूजन, पीठ दर्द

8. वृश्चिक:-

रक्त विकार, पेट में ऐंठन, पित्त पथरी, बवासीर, पीठ दर्द, मूत्र मार्ग में संक्रमण

9. धन:-

टाइफाइड, वैरिकाज़ नसें, लकवा, जोड़ों का दर्द, जोड़ों का दर्द, बवासीर

10. मकर:-

सर्दी-खांसी का दर्द, रक्त विकार, घुटने का दर्द, चर्म रोग,

11. कुम्भ :-

पेट फूलना, रक्तस्रावी दर्द, रक्ताल्पता, जोड़ों का दर्द, दिल का दर्द

12. मीन राशि :-

खांसी दर्द, धड़कन, फेफड़ों के रोग, ट्यूमर, अनिद्रा, तपेदिक

व्यक्ति की रुचि

व्यक्ति की रुचि

1.यदि पाप ग्रह 0 डिग्री या 29 डिग्री हो या नीच ग्रह हो या उस पर एक तरफा ग्रहों की दृष्टि पड़ती हो तो जातक उस ग्रह से संबंधित व्यवसाय में रुचि रखता है।
2. लग्नेश बलशाली हो तो वह जिस राशीमे होगा उस राशि के स्वामी के कारकतत्व में आने वाले व्यवसाय जानना जाहिए। .
3. यदि शुभ ग्रह लग्न में हो या लग्न पर दृष्टि हो तो जातक उस ग्रह से संबंधित व्यवसाय में रुचि रखता है (सभी ग्रहों की दृष्टि 7वे भाव पर दृष्टी होती है, मंगल-4 और 8 वी , बृहस्पति-5 और 9 मी , शनि-3 और 10वी की विशेष दृष्टी होती हैं।
4.लग्न या लग्नेश के साथ जुड़ने वाले ग्रह में से जो ग्रह अधिक बलशाली होता है उस ग्रह के अनुसार भी जातक को व्ययसाय में रुचि होती है।


ग्रह और व्यवसाय


1. सूर्य :-

राजनीति, प्रशासन, अर्थशास्त्र, कृषि, चिकित्सा, विज्ञान, धातु, आभूषण, मौसम,

2. चंद्रमा:-

साहित्य, आवास, सामग्री, पशुपालन, डेयरी, पर्यटन, नर्सिंग, खादी सामग्री, जाल से संबंधित कार्य।

3. मंगल:-

भूमि, भवन, खनन, अग्नि, बिजली, सेना, सुरक्षा, ज्वलनशील पदार्थ, खेल, व्यायाम, चिकित्सा, विज्ञान, जासूसी,

4. बुध :-

प्रशासक, प्रकाशन, वित्त, संस्थान, अर्थशास्त्र, वेद, शिक्षा, ज्योतिष, भाषा, व्याकरण, साहित्य, व्यापार।

5. गुरु:-

शिक्षा, ज्योतिष, धर्मशास्त्र, अनुष्ठान, फिजियोथेरेपी, भाषा, व्याकरण, मार्गदर्शन, स्मृति, परामर्शदाता।

6. शुक्र:-

कला, गीत, संगीत, नाटक, होटल, स्त्री रोग, ब्यूटी पार्लर, फिल्म, वेब डिजाइन, फोटोग्राफी, फैशन।

7. शनि :-

इतिहास, पौराणिक कथा, विदेश व्यापार, धातु, कृषि, सेवा, चमड़ा, मशीनरी, जुर्माना, अन्वेषण,

सरकारी नौकरियों के बारे में

सिद्धांतों

(1) यदि सूर्य बलवान हो 2 भाव छठे भाव में हो या दसवें भाव में हो तो फल जानो
(2) यदि सूर्य बलवान हो और 12वें भाव में हो तो फल को बहुत मेहनत से जान लो
(3) गुरु बलवान हो, दुसरे भाव में हो, छठवें भाव में हो या दसवें भाव में हो तो जानिए फल


उपाय


(1) लग्नेश या लग्न या चंद्रमा को मजबूत करना चाहिए
(2) प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए मंगल की आवश्यकता है इसलिए इसे मजबूत करना चाहिए
(3) 7:00 से 7:30 के बीच सूर्यदेव को अर्घ्य देने के साथ-साथ चावल/लाल चंदन से अर्धा अर्पित करें।
(4) सूर्य और बृहस्पति यंत्र को गले में धारण करना
(4) शनिदेव की पूजा, तिल का तेल डालना

शेयर बाजार

सिद्धांतों

(1) कारक ग्रह :- चंद्र (निवेश करने के लिए)।
(2)बुध (विचार के लिए) और राहु (गुप्त तर्क और साहस के लिए)
(3)लग्न और लग्नेश की स्थिति की जाँच करनी चाहिए ।
(4)पहलाभाव , दुसराभाव (बचत के लिए), पांचवाभाव (शेयर बाजार के लिए), नौवाभाव (भाग्य के लिए) और ग्यारवाभाव (लाभ के लिए) इस सभी भाव और आईएएस भावके भावेश की स्थिति को पहचानना चाहिए ।
(5)तिसराभाव ,तिसराभाव का स्वामी और मंगल साहस के लिए होते ह।
(6)गुरु की स्थिति से धन ठहरेगा उसका पता चलता ह।
(7)मिथुन/कन्या/तुला/वृषभ/सिंह यह राशि उत्तम जाननी चाहिए।

भरोसा-अविश्वास

भरोसेमंद

1. लग्न 1,3,4,5,6,8,9 या 12 इस राशि का होना चाहिए

2. 1,3,4,5,6,8,9 या 12 का लग्नेश इस राशि में होना चाहिए

3. लग्नेश + गुरु का मिलन होना चाहिए

4. लग्नेश पर बृहस्पति की दृष्टि (5,7,9)


अविश्वसनीय चरित्र

1.लग्न 2,7,10 या 11 इस राशि का होना चाहिए

2. 2,7,10 या 11 लग्नेश इस राशि में होना चाहिए

3.लग्नेश + शनि का मिलन होना चाहिए

4. लग्नेश पर शनि की दृष्टि होना (3,7,10)

5.लग्नेश 6वें, 8वें या 12वें भाव में होना चाहिए

6. लग्नेश नीचस्थ होना चाहिए .

7. लग्न या लग्नेश पर बुध और गुरु के प्रभाव रहित शुक्र का प्रभाव किसी भी प्रकार को होना चाहिए।


नोट :- ग्रहों के बल की जांच करें

मनोबल

मनोबल

मजबूत मनोबल

नियम 1.यदि लग्नमें मंगल हो

नियम 2. मेष या वृश्चिक लग्न हो

નनियम 3. लग्न पर मंगलकी दृष्टी हो (4,7,8)

નनियम 4. लग्नेश के साथ मंगल हो (कर्क राशि अपवाद)

नियम 5. लग्नेश पर मंगल की दृष्टी हो(4,7,8)

નनियम 6. चंद्र पर मंगल की दृष्टी या साथ हो (एक भी गृह नीचस्थ न होने चाहिए) (4,7,8)

नियम 7. चंद्र मेष राशि हो या वृश्विक राशि में 3 अंशसे ज्यादा हो

नियम 8. चंद्र + मंगल की युति हो (वृश्विक राशि में 3 अंशसे ज्यादा हो)


कमजोर मनोबल

नियम 1.यदि लग्नमें शनि हो

नियम 2.लग्न पर शनि की दृष्टी हो (3,7,10)

नियम 3. मकर या कुम्भ लग्न हो

नियम 4. लग्नेश मकर या कुम्भ में हो

नियम 5. लग्नेश के साथ शनि हो

नियम 6. लग्नेश पर शनि की दृष्टी हो (3,7,10)

नियम 7. चंद्र पर शनि की दृष्टी हो। (3,7,10)

नियम 8. चंद्र मकर या कुम्भ में हो

नियम 9. शनि + चंद्र की युति हो।

नियम 10. कर्क में शनि हो।

नियम 11.यदि मंगल कर्क में हो

नियम 8. चंद्र 6,8,12भाव में हो

नियम 8. चंद्र मृत या अस्त ह।

शत्रु पीड़ा

शत्रु के बारेमे

ज्योतिष में शत्रु का अर्थ होता है किसी भी प्रकार का शारीरिक, मानसिक या आर्थिक कष्ट, अर्थात शत्रु पीड़ा।


शत्रु तालिका

ग्रह

6 छठ्ठे भाव की राशि

8 आठवे भाव की राश

11 ग्यारवे भाव की राश

12 बारवे भाव की राश

सूर्य

1,8 2 10 7

चंद्र

7,11 1 9 6

मंगल

4,9,11 5,10 1,6 3,10

बुध

2,6,9,11 3,12 8,11 5,8

गुरु

3,5,8,12 6,9 2,5 2,11

शुक्र

3,5,10 4,11 7,12 4,9

शनि

1,2,6,7 7,8 3,4 1,12

समझ: -1. उदाहरण के लिए, यदि कुंडली में छठे भाव में 1 (मेष) राशि है और उसमें यानी 1 (मेष) राशि में सूर्य ग्रह मौजूद है, तो सूर्य के शत्रु ग्रह को जानें।
उदाहरण के लिए यदि कुण्डली में 12वें भाव में 9 (सकारात्मक) राशि हो और शुक्र 9 (सकारात्मक) राशि में हो तो शुक्र शत्रु ग्रह है।


सिद्धांत

नियम:1- छठ्ठा भाव शत्रु के लिए भी ह।

નિયમ.:2- 12 भाव गुप्त शत्रु के लिए भी ह।

नियम.:3- छठ्ठे भावमे रहल ग्रहया छठ्ठेश से शत्रुओ की बारेमे सोचा जाता है ।

नियम:4- सूर्य होने पर क्षेत्रीय शत्रु जानना चाहिए ।

नियम:5- चंद्र होने पर घरेलु शत्रु जानना चाहिए ।

नियम:6- मंगल होने पर दूसरे धर्म के शत्रु जानना चाहिए ।

नियम:7- बुध होने पर स्त्री शत्रु जानना चाहिए ।

नियम:8- गुरु होने पर ब्राह्मण शत्रु जानना चाहिए ।

नियम9- शुक्र होने पर स्त्री शत्रु जानना चाहिए ।

नियम10- शनि होने पर नीच कोटी का या सेवक शत्रु जानना चाहिए ।

नियम:11- राहु/केतु होने पर नीच कोटीका या सेवक क्षेत्रीय शत्रु जानना चाहिए ।


शत्रुजय

नियम:1- छठ्ठे भाव में गुरु हो।

नियम:2- लग्नेश से छठ्ठेश काम बली हो।

नियम:3- लग्न को बल मिल रहा ह।


कार्य फल सिद्धांत


नियम:1- साहस के लिए तीसरा भाव देखे ।

नियम:2- कार्य के फैला की प्राप्ति के लिए ग्यारवा भाव देख।

नियम:3- चंद्र की भी मजबूती देखिए ।

भाग्योदय:

भाग्योदय के लिए लग्न कुन्डलीमे का नवम भाव देखी उस भाव में कोनसी राशि ह। उस राशि के स्वामी के वर्ष अनुसार भाग्योदय जानना चाहि।

यदि सूर्य निकलकर आता है तो 24 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि चंद्र निकलकर आता है तो 24 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि मंगल निकलकर आता है तो 28 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि बुध निकलकर आता है तो 22 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि गुरु निकलकर आता है तो 16 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि शुक्र निकलकर आता है तो 52 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि शनि निकलकर आता है तो 36 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
यदि राहु निकलकर आता है तो 42 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
(यदि कन्या राशि में राहु बुध से अधिक मजबूत होता है तो समजे )
यदि केतु निकलकर आता है तो 48 में वर्ष या उसके बाद जानना चाहि।
(यदि मीन राशि में केतु गुरु से अधिक मजबूत होता है तो समजे )

विवाह के बारेमे

विवाह के बारेमे
१ जातक या जातिका शादीके लिए उचित है या नहीं।
२. सप्तमेश या सातमे भाव पर दृष्टी करेने वाला ग्रह या सातमे भाव में रहनेवाला ग्रह की दशा या अंतर्दशा में शादी के योग जानिए ।
३. जब गुरू -शनि की दृष्टी सातवे भाव पर हो तब विवाह जानिए ।(गुरु:-५-७-९|शनि:-३-७-१०)


दिशा के बारेमे


१. जन्म कुंडलीके सातवे भावमे जो ग्रह हो उच्च ग्रह की दिशा जाने(अधिक ग्रह होने पर सबसे बली ग्रह को जाने)
२.सातवे भावमे जो राशि हो उच्च राशि की दिशा जाने।
३.शुक्र जिस भाव को पूर्ण दृष्टी जिस राशि को देझता हो उस राशि के ग्रहस्वामी की दिशा जाने।


यदी मेष या वृषभ हो तब पूर्व दिशा
यदी मिथुन राशी हो तब पूर्व दक्षिन दिशा
यदि कर्क या सिंह हो तब दक्षिन दिशा
यदि कन्या हो तब दक्षिन पश्विम दिशा
यदि तुला या वृश्विक हो तब पश्विम दिशा
यदि धनु हो तब उत्तर पश्विम दिशा
यदि मकर या कुंभ हो तब उत्तर दिशा
यदि मीन हो तब पूर्व दिशा

यदि सूर्य हो तब पूर्व दिशा
यदि चंद्र हो तब पश्विम उत्तर दिशा
यदि मंगल हो तब दक्षिन दिशा
यद बुध हो तब उत्तर दिशा
यदि गुरो हो तब उत्तर पूर्व दिशा
यदि शुक्र हो तब दक्षिन दिशा
यदि शनि हो तब पश्विम दिशा
यदि राहु हो तब दक्षिन दिशा
यदि केतु हो तब पश्विमदक्षिनदिशा


दुरी जानने के लिए


1.यदी सातवे भावमे स्थिर(२-५-८-११) राशी हो तब ८० कि.मी दुरी जाने।
2. यदी सातवे भावमे द्रिस्वभाव(३-६-९-१२) राशी हो तब ८० कि.मी से १५० के भीतर की दुरी जाने।
૩. यदी सातवे भावमे चर(१-४-७-१०) राशी हो तब १५० कि.मी से अधीक दुरी जाने।


नाम या नक्षत्र के बारेमे


अ.. जो ग्रह सातवे हो उस ग्रह के वर्ण जाने
(अधीक ग्रह हो तब बलशालीग्रहको ले)

1.सूर्य :- अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ।
૨.चंद्र:- य,र,ल,व,श,ष,स,ह।
૩.मंगल/राहु:- क,ख,ग,घ्।
૪.बुध:- ट,ठ,ड,ढ,ण।
૫.गुरु:- त,थ,द,ध,न।
૬.शुक्र:- च,छ,ज,झ।
૭.शै/केतु:-प,फ,ब,भ,म्।
ब... जब सातवे भावमे कोइ भी ग्रह ना हो तब राशी के वर्ण होते है।



प्रेम विवाह

1.प्रथम स्थान को देह स्थान स्वयं का स्थान होता है।

2. तीसरा भाव पराक्रमकाद का होता है।

3.पांचवाभाव साहस, जोखीम को बतलाता है।

4. सातवा भाव स्त्री-पुसुष के संबंधको दर्शाता है।

5. नववा भाव भाग्य को बताता है।


अब देखाते है ग्रह :


1.शुक्र :- यह प्रेम,जातिय आकर्षण का कारक है।

2.मंगल:- यह साहस ऐर तृष्णा का कारक है।

3.गुरु :- यह मांगलीक प्रसंग का कारक है।

4 चंद्र:- यह लगन और भावनाओ का कारक है।

शनि/राहु/केतु:- यह निष्फल्ता,बिलम,संघर्ष के बाद सफलता का कारक है।.


लग्न कुंडली मे देखे


नियम: -1 यदी पंचमेश,सप्तमेशऔर नवमेश एक साथ एक ही भावमेहो तब प्रेमविवाह।

नियम:-2 यदी म%गल+शुक्र कीसी भी भावमे हो और पंचमेश ऐर चंद्रकी द्र्ष्टी उस पर हो तब प्रेमविवाह। .

नियम:-3 जदि पंचभावमे या पंचमेश अथवा सप्तमभाव या सप्तमेश के साथ शुक्र का संबंध हो तब प्रेमविवाह।

नियम:-4 यदि पंचमेश सातवे अर सप्तमेश पंचममे तब प्रेमविवाह

नियम:-5 यदि पंचमेशऔर सप्तमेश एक दूसरे को देखते हो तब प्रेमविवाह

नियम :-6 यदि अष्टमेश बलहिन चंद्र के साथ सातवे भावमे हो तअब बुजर्गोकी अनिच्छा कए साथेगुप्त प्रेमविवाह होते है।

नियम:-7 यदि शुक्र चर राशी(१-४-७-१०) वे और शनि,मंगल,राहु अथ्वा केतु की युति हो तब आंतरज्ञाति मे प्रेमविवाह

नियम :-8 यदि चोथेभाव के कारण यह योग होता है और इस स्थान के भावेश राहु अथवा केतु बनते हो तब अन्य धर्म के साथ प्रेमविवाह जाने।

नियम:- 9 यदि गुरो या शुक्र या दोनो सातवे भावमे हो तब प्रेमविवाह है ओ भी स्व या उच्च जाति के साथ्।

नियम :-10 यदी सूर्य निक्च हो और शनि,मंगल,राहु या केतु के साथ हो अथवा शुक्र राहु का संबंधहो सब आंतरज्ञातिमे प्रेमविवाह जाने

नियम:-11 यदी नवम भावमे या नवमेश के साथ शनि,राहु,मंगल अथवा केतु का संबंध होता हऐ तो अन्यधर्म के साथ प्रेमविवाह जाने।

नियम:-12 यदि शुक्र+चंद्र पांचवे भावमे अथवा गुरू+केतु साथ मे पंचम या नवम भावमे हो तब प्रेमविवाह जाने ।

नियम:-13 यदि सातवे भाव, सप्तमेश और शुक्र यदि शै ,राहु से पीडीत होते है तो प्रेम भंग के बाद दूसरा प्रेम संबंध करके प्रेमविवाह होता है।


नोंध :- गुरू की द्रष्टीयदी भाग्य भाव पर हो या गुरोस्वयं बेठा हो तब अपने ही साथ देते है।

वैवाहिक जीवन मै दुख

नियम 1. जन्म कुंडली में सप्तमेश की स्थिति अशुभ या बलहीन हो तब वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं रहता

नियम 2. दूसरा जन्म कुंडली में सप्तम भाव पर पाप ग्रह या नीच ग्रह या किसी भी तरह से निर्बल हो तब वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं रहता

नियम 3. जन्म कुंडली के पहले चौथे सातवें आठवें या बारहवें भाव में मंगल या सूर्य हो तब वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं रहता

नियम 4.यदि दोनों साथ हो तब बहुत ही खराब विवाहित जीवन गुजारना पड़ता है

नियम 5. जन्मकुंडली के 68 या 12वीं इन भागों में भी गुरु तब आर्थिक स्थिति से परेशानियां होती है

नियम 6. जन्म कुंडली के प्रथम चौथे सातवें आठवें या बाहर में मंगल हो तब वैवाहिक जीवन अच्छा नहीं गुजरता है शनि और मंगल दोनों साथ हो तो थोड़ी राहत मिलती है