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वास्तुशास्त्र | Vastu Shastra in hindi । Vastu Shastra Tips:

Vastu Shastra in hindi । Vastu Shastra Tips: बड़ी से बड़ी समस्याओं को हल करे वास्तु से ...इस लेखमे वास्तुशास्त्र के बारे मे दिया गया है। जो वास्तुशास्त्र के जिज्ञाषुओको प्रिय रहेगा ।इस लेख मै Vastu Shastra कुस बाते बताइ गइ है, जिससे वास्तु अनुरुप अपना भवन निर्माण करके जिवन को उत्तम और सरल बना सकते हो।

आप हमसे संपर्क करके अपने किसी भी प्रश्न को हल कर सकते हैं, अपनी सटीक तिथि, समय और जन्म स्थान बताकर कुंडली बना सकते हैं और अपनी कुंडली का विश्लेषण कर सकते हैं।

आभार

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पूर्व दिशा

पूर्व दिशा

पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र, आयुष्य,व्रज और प्रतिनिधि ग्रह सूर्य हैं।यह कालपुरुष का मुख है।


पूर्व दिशा दोष

1.भवनका मुख्य द्रार एवम खीडिकिया पूर्व की ओर अवश्यरखनी चाहिए । खिडकिया इस तरह रखनी चाहिएकी सूर्य का पहले प्रहर तक सुरजा की रोशनी भवन मे आति रहे । पूर्वदिशा को हंमेशा के लीए साफ सुथरा रखे ।इस दिशामे शौचालय कभीभी ना होना चाहिए ।

2. पूर्व दिशा का स्थान ऊंचा हो तो घर का स्वामी दरिद्र होता है संतान अस्वच्छ और मंदबुद्धि के होते है।.

3. यदि निर्माण कार्य बिना खाली स्थान के किया जाता है तो बालक अपंगता या पक्षाघात जैसे रोगों से ग्रसित हो जाता है।

4. यदि पूर्व दिशा का भवन मे मुख्य द्वार या अन्य द्वार अग्नेय मिख हो तब द्दरिद्रता,कोर्ट कचेहरी के चक्कर,चोरी होने का भय या आग लगने का भय रहता है।

5.यदि पूर्व में मुख्य वास्तु की तरह चबूतरा ऊंचा हो तो अशांति रहेगी। आर्थिक खर्चे बढ़ेंगे और गृहस्थ कर्जदार हो जाएगा.

6. यदि पूर्व दिशा में सड़क से किनारे मकान निर्माण किया हो और उस मकान के पश्चिम दिशा में खुला स्थान नीचा हो तो उस घर के पुरुष दीर्घकालीन रोगों से ग्रसित रहेंगे।.

8. पूर्व दिशामे खाली जगह न हो और उससे थोडा उंची गेलेरी या बरामदा ढालवाला निर्माण किया गया हो तब नेत्र-विकार, पक्षाघात आदि बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

9. यदि मकान किराये पर देना हो तो ऊपर के भाग में मकान मालिक को स्वयं रहना चाहिए और नीचे के भाग को किराएदार को देना चाहिए। यदि किरायेदार परिसर को खाली कर देता है, तो तुरंत एक और किरायेदारी रखें या मकान मालिक खुद उपयोग करे। घर खाली होने के कारण घर के स्वामी का निवास उत्तर दिशा में बोझ होगा तो कई समस्याओं को जन्म देगा.

10पूर्वमुखी घरों के लिए बाहरी दीवारें ऊंची नहीं होनी चाहिए। घर का मुख्य द्वार सड़क से दिखाई देना चाहिए, अन्यथा अशुभ फल मिलेंगे, पूर्व दिशा में बनी बाहरी दीवार पश्चिम दिशा की दीवार से ऊंची नहीं होनी चाहिए, इससे संतान को नुकसान होगा।p>

11. यदि घर में कोई वास्तु दोष हो तो उस दोष का परिणाम निवासी और किरायेदार को भुगतना पड़ता है।


पूर्व दिशादोष निवारण

1. इस दिशा के दोष के लिए सूर्य का यंत्र स्थापित करना चाहिए ।

सूर्ययंत्र


2. सूर्य को अर्ध्य दे और सूर्य की उपासना करे।

3.पुर्व के द्वार पर वास्तु मंगलकारी तोरण लगाइए

वास्तु मंगलकारी तोरण


पश्विम दिश

पश्विम दिशा

पश्चिम दिशा का स्वामी वरुण, आयुध पाशा और प्रतिनिधि ग्रह शनि है।पश्चिम दिशा से कल्पपुरुष आदि का पेट माना जाता है।


पश्चिम दिशा दोष

1 पश्विम में यदि स्नानागार या स्वामी का शयनकक्ष हो तो पति-पत्नी बहुत कम समय के लिए एक साथ रह सकेंगे। इसका कारण भले ही आपस में झगड़ा न हो, बल्कि पति-पत्नी का अक्सर यात्रा करना या काम से दूर रहना हो सकता है।p>

2. यदि पशविम में रसोई हो तो गृहस्थ बहुत धन कमाएगा लेकिन उस धन से बरकत नहीं होगा.

3. यदि अग्नि स्थान ठीक पश्चिम दिशा में हो तो घर के निवासी को शनि और मंगल के प्रभाव से गर्मी, बुखार और मस्से की शिकायत होगी।यदि घर का दरवाजा छोटा है तो मालिक के उज्ज्वल भविष्य केतु के नकारात्मक प्रभाव से बाधाए होगी ।.

4. पश्विम में पूजा स्थान होने पर गृहस्वामी ज्योतिष, तंत्र-मंत्र तथा अन्य गूढ़ विद्याओं का ज्ञाता होगा। यदि पश्चिम में शौचालय या पुराना गोदाम है तो गृह स्वामी राहु से प्रभावित होगा। राहु का यह प्रभाव अचानक लाभ देता है।

5. यदि घर, आंगन, कमरा और बरामदा का पश्चिमी भाग नीचा हो तो अपयश और धन हानि होती है। पश्चिम के अतिरिक्त पूर्व दिशा में रिक्त स्थान कम होने से पुत्र-कन्यायों की हानि होगी।

6. पश्चिम भाग में झोपड़ी, रोप, कुटीर आदि का फर्श घर के मुख्य वास्तु स्थान के स्तर से नीचा हो तो अर्थ हानि या अपशय होगा।p

7. यदि पश्चिम भाग में द्वार दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर है तो लंबी बीमारी, अचानक मृत्यु और आर्थिक नुकसान होने की संभावना है। यदि पश्चिमी भाग का द्वार उत्तर और पूर्व की ओर हो तो अदालती लड़ाई में वृद्धि होती है और धन की हानि होती है। यदि पश्चिम दिशा में चबूतरा मुख्य वास्तु के स्तर से नीचे हो तो धन की हानि और दुख होता है।.

8. यदि पश्चिम से पानी या बारिश का पानी पश्चिम से निकल जाता है, तो पुरुष पुरानी लंबी बीमारियों का शिकार हो जाता है।

9. यदि घर की दीवारें काली या गहरे नीले रंग की हैं, घर में अंधेरा है, सीढ़ियां बहुत ऊंची हैं या रहस्यमय दरवाजे हैं, तो गृह स्वामी की कुंडली शनिग्रह से प्रभावित होगी।


पश्विम दिशादोष निवारण

1. दिशा दोष के निवारन हेतु वरुण यंत्र का स्थापित करें।

2.शनिवार का व्रत करे।

3. शनिवार के दिन शमी(खीझडा) के वृक्ष को जल अर्पित करे

उत्तर दिश

उत्तर दिशा

उत्तर दिशा का स्वामी कुबेर, आयुध, गदा और प्रतिनिधित्व बुध है।उत्तर दिशा में कल्पपुरुष का हृदय और छाती: स्थान माना जाता है।


उत्तर दिशादोष

1. उत्तर दिशा वाले घर के उत्तर दिशा में पूजा कक्ष, गेस्ट हाउस या ऑफिस हो तो यह बहुत ही शुभ और लाभकारी माना जाता है। यदि उत्तर दिशा में कोई दरार वाली या टूटी हुई दीवार हो तो घर में किसी स्त्री के कारण परेशानी होगी।

2. उत्तर दिशा में कुआं या जलाशय हो तो घर के किसी सदस्य की छठी इंद्री जाग्रत होती है। उन्हें हर घटना का पूर्वाभास मिलेगा।पुराना साहित्य पढ़ने का शौक होगा.

3. कुआं होने पर घर की महिलाएं चमत्कारी स्थितियों में रुचि लेंगी.

4. उत्तर दिशा में किचन हो तो घर में रोज लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।

5. यदि उत्तर दिशा में रसोई के साथ स्नानागार हो तो भाईयों में प्रेम रहेगा, घर की स्त्रियां आपस में लड़ेंगी।

6. उत्तर दिशा में हैंडपंप या पानी का नल हो तो घर की लक्ष्मी किसी और के पास चली जाएगी या दरिद्रता का योग होगा।

7. यदि उत्तर दिशा में प्राचीन वस्तुओं का संग्रह हो और गलियारा खाली और संकरा हो तो उस परिवार के लोग दुर्भाग्यशाली होते हैं। उनकी संपत्ति धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगी।

8. उत्तर दिशा के उच्च होने पर उस परिवार का धन नष्ट होगा और घर की स्त्रियां बीमार रहेंगी.

9. यदि उत्तर दिशा में कोई स्थान खाली न हो तो पड़ोसी की सीमा से लगा हुआ मकान हो और दक्षिण दिशा में कोई स्थान खाली हो तो वह घर किसी और का हो जाएगा या मकान बेचने की नोबत आ शकती है।

10. उत्तर दिशा में कबाड़, गोबर आदि के ढेर होंगे तो आर्थिक हानि होगी.

11. यदि उत्तर दिशा का दरवाजा उत्तर पश्चिम की ओर है तो चोरी और आग लगने की संभावना रहती है।

12. यदि घर के केंद्र की तुलना में उत्तर दिशा का चबुतरा ऊंचा है, तो अधिक खर्च, अशांति और कर्ज में वृद्धि होगी।

13. यदि उत्तर दिशा अशुभ हो तो गृहस्वामी की कुंडली में चौथा भाव खराब होगा, माता का सुख और नौकरों का सुख कम होगा।


उत्तर दिशादोष निवारण

1. दिशादोष से बचने के लिए बुध यंत्र की स्थापना करें

2. बुधवार का व्रत करें

3. घर की डोर बेल तोते आवाज की तरह रखे।

4. घर की दीवारों को हरा पेंट करें.

दक्षिण दिश

द्क्षिण दिशा

दक्षिण दिशा के स्वामी यम, आयुध दंड और प्रतिनिधि मंगल हैं। कालपुरुष का बायां वक्ष, गुर्दा और बायां फेफड़ा दक्षिण दिशा में माना गया है।


दक्षिण दिशा दोष

1. घर के दक्षिण में अध्ययन कक्ष या पुस्तकालय हो तो विद्याध्ययन में बाधा आती है।

2. यदि दक्षिण दिशा में पूजा कक्ष हो और उसमें शयन कक्ष हो तो पूजा केवल दिखावे के लिए होगी, भक्ति बिल्कुल नहीं होगी।

3. यदि घर के दक्षिण में दरवाजा हो, उसके सामने दीवार या भवन हो तो यह स्थिति अशुभ मानी जाती है। दक्षिण दिशा के द्वार के सामने गड्ढा, मैदान या अंधेरा हो तो गृह स्वामी के भाइयों में क्लेश होता है।.

4. घर का दक्षिणी भाग स्वामी के लिए महत्वपूर्ण रहता है। यदि दक्षिण दिशा में कुएं, दरारें, कूड़े के ढेर, पुरानी और पुरानी चीजें रखी हों, तो घर का स्वामी हमेशा के लिए बीमार रहेगा और उसे कभी भी घर का सुख नहीं मिलेगा।

5. घर की दक्षिण दीवार मजबूत हो तो शुभ फल मिलता जरूरी है.

6. यदि दक्षिण मार्ग में खाली जगह घर और प्रत्येक कमरे के बगल में हो और गैलरी का दक्षिण भाग नीचा हो, तो महिलाओं को हमेशा बेचैनी रहेगी। संपत्ति हानि और आकस्मिक मृत्यु की संभावना है.

7. दक्षिण दिशा को यम का वास माना गया है। इसलिए दक्षिण दिशा में कुछ जगह छोडकर भवन निर्माण का कार्य करना चाहिए। यदि उत्तर की तरह दक्षिण में भी थोड़ी जगह कम कर दी जाए या उससे समतल कर दिया जाए तो कोई दोष नहीं होगा.

8. दक्षिण में बाहरी दीवार और भवन की दीवारें उत्तर की दीवारों से ऊंची नहीं होनी चाहिए, अन्यथा वे अर्थहानि हो जाएंगी।

9 यदि घर के मध्य भाग की अपेक्षा दक्षिण भाग में चबूतरा नीचा हो तो खर्चा अधिक होता है और असुविधा उत्पन्न होती है.

10. यदि दक्षिण दिशा का दरवाजा आग्नेयमुखी की ओर हो तो आग लगने का खतरा और कोर्ट कचहरी की कार्यवाही हो सकती है.

11. यदि दक्षिण भाग का द्वार नैऋत्य दिशा की ओर हो तो लम्बी बीमारी और आकस्मिक मृत्यु योग होता है।

12. दक्षिण की ओर मुख करके घर के बगल में ढलान वाला बरामदा नहीं बनाना चाहिए। इसे अशुभ और अमंगलकारी माना जाता है। यदि आवश्यक हो तो उत्तरी बरामदे का ढलान दक्षिण ढलान की तरह ही बढ़ाया जाना चाहिए।

13. दक्षिण दिशा में बिना खंभों के स्लैब का निर्माण करना चाहिए। ऐसे में खंभों की संरचना निर्माण के रूप में नीची हो जाती है। दक्षिणी भाग में अनर्थकारी माना जाता है इसलिए घर की पटिया पर बिना खंभों के सहारे पार्टी बनानी चाहिए। एक पोर्टिको का यदि कोई स्तंभ अपरिहार्य है । फर्श घर के केंद्र के नीचे नहीं होना चाहिए।

14. यदि दक्षिणी भाग में अधिक रिक्ति होती है तो आर्थिक नुकसान, झगड़े होंगे, जिससे महिलाओं के लिए यह एक परेशान करने वाली उपलब्धि होगी।


दक्षिण दिशादोष निवारण

1. दिशादोष से बचने के लिए दक्षिण द्वार पर मंगल का यंत्र लगाएं.

2. दक्षिणमुखी गणपति भीतर और बहार की ओर द्वार पर लगाएं.

3. गेट पर वास्तु मंगलकारी तोरण स्थापित करें.

4. भैरवजी या हनुमानजी की पूजा करें.

इशान दिशा

उत्तर पूर्व(इशान) दिशा

उत्तर पूर्व(इशान) दिशा दिशा के स्वामी रुद्र, आयुध त्रिशूल और प्रतिनिधित्व बृहस्पति हैं। उत्तर पूर्व(इशान) दिशा में कालपुरुष को दाहिनी आंख माना गया है।


उत्तर पूर्व(इशान) दोष

1. ईशान कोण में बड़ा हॉल या गैलरी हो तो घर शुभ होता है। कारण कि ऐसे घर में कालपुरुष पूर्व और ईशान कोण से ही प्रवेश करेगा। शौचालय हो तो वह वंश नष्ट हो जाता है, उसकी उन्नति नहीं होगी, वंश बेकार होगा। घर में लड़ाई-झगड़ा होगा।

2. यदि सोते समय दाहिना भाग ऊंचा हो जाता है, तो बाजू बदलते समय स्लीपर को थोड़ा सा झुकाव का अनुभव होगा, इस प्रकार सिर और गर्दन को आराम मिलेगा।

3.यदि उत्तर दिशा की लंबाई कम हो और उत्तर दिशा में भवन हो तो उस घर की गृहिणी रोग ग्रस्त होगी या आकस्मिक मृत्यु होगी या आर्थिक तंगी का सामना करते हुए दुखी जीवन व्यतीत करेगी।

4. पूर्व दिशा के क्षेत्रफल में कमी होने पर, यदि पूर्वी सीमा पर भवन हो, तो गृहस्थ या उसका ज्येष्ठ पुत्र उपरोक्त अनुभव करेगा। तीसरी पीढ़ी आने तक, गृहस्थ का परिवार नष्ट हो जाएगा।

5.यदि पूर्व-उत्तर दिशा जुड़ी हो तो वहां रहने वाले व्यक्ति को धन होते हुए भी नीरस जीवन व्यतीत करना पड़ेगा, संतान नहीं होगी, पुत्र गोद लेने पर भी पुत्र सुख नहीं मिलेगा।

6. यदि निर्माण का उत्तर-पूर्व कोना ढका हुआ है, तो अशुभ भी प्रभावित होगी।

7. ब्लॉक के अंत में घर हो और नैर्ऋत्य कोण में गड्ढा हो तो अशुभ फल मिलने की सम्भावना रहती है।

8.घर के बाहर या पूर्व में केंद्रीय स्थान से ऊंचा नहीं होना चाहिए। चबूतर पूर्व दिशा में होने से पुरुषों को अशुभ फल और उत्तर दिशा में चबूतर होने से स्त्रियों को अशुभ फल भोगने पड़ते हैं।

9. यदि उत्तरी द्वार दक्षिण द्वार के समान तथा पूर्वी द्वार पश्चिमी द्वार के समान ऊँची भूमि पर हों तो भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

10.उत्तर-पूर्व ब्लॉक में बाहरी दीवार का द्वार उत्तर-पूर्व दिशा में हो तो इसका भयंकर परिणाम भुगतना पड़ता है।

11. यदि मकान की पूर्व दिशा या बाहरी दीवार गिर जाए तो पुत्र को संतान की प्राप्ति नहीं होगी, हो भी जाए तो अपंग, भ्रमजाल और अल्पायु होगा।

12. बाहरी दीवार की उत्तर दिशा ठीक हो , लेकिन यदि घर की उत्तर दिशा गायब हो जाए तो यह गृहस्थ को संतान शोक (दुख)के योग को दर्शाती है।

13.ईशान कोण को छोड़कर किसी और दिशा में कुआं या गड्ढा हो तो मकान के स्वामी को अशुभ फल मिलते हैं।

14. यदि उत्तर में कोई युटी है तो गृह स्वामी की संतान विकलांग होगी।

15.यदि ईशान कोण में झोपड़ी बनाकर पूर्व-उत्तर की दीवार से झुडा हुआ हो तो परिवार को विनाश और दरिद्रता का सामना करना पड़ता है।

16. इशान कोण में कूड़े या पत्थरों का ढेर होने से शत्रु वृद्धि होगी। जीवन कम और चरित्रहीन होगी।

17. यदि इशान कोण ऊंचा है तो जातक को धन हानि, संतान हानि और कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

18. यदि ईशान कोण में खाना बनाने का घर है तो घरेलू कलह और ठोस पदार्थों का विनाश होगा।

19.यदी इशान कोण शौचालय हो तो उस घर का निवासी गृहहीनता, दीर्घकालीन रोग तथा चरित्रहीनता का शिकार होगा।

20. भले ही घरों की बगल की दीवारें वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार बनाई गई हों, लेकिन यदि पूर्व और उत्तर की सड़कें घर से ऊंची हों, तो निवासी अपेक्षित शुभ फल से वंचित रहेंगे।

21. यदि ईशान कोण की पूर्व दिशा में सड़क घर के पास पश्चिम की ओर मुड़ी हुई हो तो उत्तर दिशा की तरह पूर्व दिशा की ओर न होकर दक्षिण दिशा की ओर हो और उस स्थान पर पूर्व और उत्तर नजदिक हों तो पूर्ण फल नही मोलता है।

22. यदि घर के इशान कोण में वास्तु दोष है तो दक्षिण पश्चिम में दोष होगा। यदि इशान कोण ऊंचा है,शौचालय है या कटा हुआ है, तो दक्षिण पश्चिम होगा कम। वहां कुआं बना हुवा होगा या सेप्टिक टेंक होगी। दक्षिण पश्चिम खुला रहेगा। इस प्रकार यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा में दोष है तो ईशान कोण में भी अवश्य ही दोष होगा।


इशान दिशादोष के उपाय

1. ईशान कोण को हर हाल में पवित्र रखें।

2. उत्तर-पूर्व दिशा में नियॉन लाइट लगाएं।

3. दरवाजे पर रुद्र तोरण लगाएं।

4. प्रतिदिन भगवान शिव की पूजा करें और सोमवार का व्रत करें

आग्नेय कोण(दिशा)

आग्नेय कोण(दिशा)

अग्निदिशा के स्वामी गणेश हैं, आयुध शक्ति है और प्रतिनिधि शुक्र है। अग्निदिशा में कालपुरुष का बायां घुटना और बांया नेत्र माना गया है।


आग्नेय कोण(दिशा)

1.किचन हमेशा अग्निकोण में होना चाहिए।

2. यदि रसोई से जुडा हुवा घर हो तो गृहस्वामी चंचल स्वभाव का होगा। थकी-थकी, अधिक बोझ से बीमार और सास-ससुर से कष्ट होगा।

3. अगर घर का हर कमरा रेल के डिब्बे की तरह सीधी रेखा में हो और रसोई के पास हैंडपंप या कुआं हो तो घर की हर महिला बीमार होगी। वे मधुमेह या शारीरिक कमजोरी के कारण कमजोर हो सकते हैं। परन्तु ज्येष्ठ स्त्री धर्मपरायण, दानशील और वैभवशाली होगी।

4. यदि रसोई घर की दीवारें टूटी हों तो गृहस्वामी की पत्नी बीमार रहेगी। उनका जीवन संघर्षमय रहे।

5. अग्नि स्थान में बने घर में पूर्वी अग्नि दिशा या दक्षिण अग्नि का कोण और उत्तर-दक्षिण संगम कोण ऊंचा होता है, अग्नि नीची हो तो कुआं या गड्ढा होता है, अगर घर उत्तर दिशा में खाली जगह छोड़े बिना बनाया जाता है दिशा, उत्तरी स्थान में एक खाली जगह रखते हुए हालांकि, यदि दक्षिण में अधिक खाली जगह हो, तो बाहरी दीवार के दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम या पूर्व-आग्नेय में एक द्वार हो, और यदि पश्चिम में पूर्व में अधिक खाली जगह हो, तो गृहस्वामी को अकल्पनीय सहन करना पड़ता है। नुकसान। कोर्ट-कचहरी के झगड़े, चोरी और आगजनी की घटनाओं का भय है.સ્ત્રી -पुरुषों में चारित्रिक दोष पैदा करता हैहोता है, आमदनी से ज्यादा खर्चे हो जाते हैं, गृहस्थ कर्जदार हो जाता है या उसे अपना घर बेचना पड़ता है। पुत्र नहीं होने से घर स्त्री का घर बन जाता है। इसलिए घर लड़कियों के हाथ में होता है। इसी तरह की स्थिति एक व्यापार दुकान कार्यालय या गोदाम में होती है।

6.यदि आग्नेय ब्लॉक के लिए पूर्व-आग्नेय कोण पर मार्ग आघात कर रहा है तो पुरुष भ्रष्ट हो जाता है ऐसे घर में स्त्री सत्ता चलती है।

7. यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा प्रभावित हो तो स्त्रियों को सुख नहीं मिलता। वे मनोभ्रंश जैसी बीमारियों की शिकार हो जाती हैं। कहीं-कहीं आत्महत्या का प्रयास भी किया जाता है।

8. यदि मुख्य द्वार दक्षिण में हो और पूर्व-उत्तर की सीमा पूर्व में बनी हो तो दीर्घकालीन रोगों का खतरा रहता है।

9. यदि दक्षिण में मुख्य द्वार हो और पूर्व-उत्तर की सीमा मानकर पूर्व-आग्नेय में नोक हो तो दूसरी संतान बुरी तरह प्रभावित होती है।
यदि मुख्य द्वार दक्षिण में हो और बरामदे को पूर्व-उत्तर सीमा मानकर दक्षिण दिशा में ढाल रखकर बनाया जाए तो घर के स्वामी को घातक रोग होंगे और संतान भी चरित्रहीन होगी।

10. दक्षिणमुखी द्वार हो तो पूर्व-उत्तर सीमा को नोर बनाया जाता है, यदि पश्चिम दिशा में खाली स्थान हो, पूर्व से पश्चिम दिशा में कुआं हो तथा पश्चिम दिशा में कुआं भी हो तो , तो ऐसे घर का स्वामी रोगों का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त होता है।

11. यदि पूर्व दिशा में प्रवेश द्वार हो, उत्तर को सीमा बनाकर दक्षिण में खाली स्थान हो और दक्षिण दिशा में कुआं हो तो स्त्री मृत्यु का योग त्रासदी में घटित होगा।

12. यदि पूर्व दिशा में मुख्य द्वार हो, उत्तर दिशा में पूर्व मार्ग को सीमा बनाकर ऊंचा स्थान या चबूतरा बनाया जाए तो गृहस्थ की अकाल मृत्यु होने की संभावना रहती है।

13. यदि पूर्व की ओर मुख्य द्वार हो और उत्तर-पूर्व की सीमा बनाकर पश्चिम-दक्षिण में खाली स्थान हो तो पति-पत्नी के बीच घोर द्वेष बढ़ेगा। और उनके बच्चे भी गैर जिम्मेदार होंगे।

14. यदि पूर्व में मुख्य द्वार, उत्तर में सीमा, दक्षिण में खाली स्थान और दक्षिण-पश्चिम में हो तो बहुत सी महिलाओं को दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है।

15. आग्नेय खंड की पूर्व दिशा में सड़क सीधे उत्तर की ओर न जाकर मकान के पास समाप्त हो तो मकान आश्रित होगा।

16.यदि पूर्व में मुख्य द्वार हो, दक्षिण-पूर्व दिशा में बाहरी दीवारों के पूर्व की ओर एक द्वार, घर के उत्तर-पूर्व में कटा हुआ, उत्तर-पश्चिम में एक कुआं और एक ढाल की ओर झुका हुआ हो। दक्षिण-पश्चिम में, पश्चिम में नीची जगह और बाहरी दीवारों के दक्षिण-दक्षिण-पश्चिम में एक द्वार, गृहस्थ विद्वान होने पर भी आत्महत्या कर लेता है।

17. यदि दक्षिण में मुख्य द्वार हो, पूर्व में सीमा के रूप में पश्चिम में नीचा स्थान या कुआँ हो तथा पूर्वी अग्नेयकोण मार्ग से प्रभावित हो तो वंश नष्ट हो जाता है। पति-पत्नी भी मारने के लिए प्रेरित होते हैं।

18. घर के पूर्वी अग्नि कोण में दरवाजा न बनवाएं, नहीं तो झगड़े के साथ चोरी और आग लगने की आशंका रहती है।

19. अग्नि भाग में पूर्व दिशा में उत्कर्ष हो तो पुत्र नाश के साथ-साथ पत्नी और संपत्ति का भी नाश होगा और दरिद्रता का योग होगा।

20. यदि अग्नि कोण केवल कोणीय रूप में उच्च हो तो अदालती विवाद, बीमारी और आग के भय से लड़ाई दोनों ही होती है।

21. दक्षिण दिशा में अग्नि कोण अधिक हो तो झगड़े होंगे और घर की स्त्रियों को कष्ट होगा। यदि मूल कोण दक्षिण-आग्नेय चतुर्थांश के रूप में मकान के दक्षिण में उच्च का हो तो वास्तु दोष नहीं होगा।

22. यदि एक ही कमरे में पूर्व, उत्तर और ईशान कोण में द्वार न हो तो पश्चिम, वायव्य और दक्षिण-पूर्व ऊंचा होने पर भी दोनों स्थानों पर द्वार नहीं होना चाहिए। किसी एक स्थान पर ही एक ही द्वार रखना चाहिए, अन्यथा भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

23. यदि दक्षिण अग्नेय नीचा हो, वायव्य और उत्तर ऊंची हो तो घर के निवासी बीमार, कर्जदार और बेचैन होंगे।

24. यदि दक्षिण अग्नेय नीचा हो, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम और उच्च हो तो घर के जातक गरीब और अस्वस्थ होंगे।

25. अग्नि उच्च, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम और ईशान कोण नीच का हो तो अपयश और वंश की हानि होती है।

26. आग्नेय में कुआं नहीं होना चाहिए, नहीं तो गृहस्थी और संतान को हानि होगी।

27. खाली जगह और हर कमरे में अग्नि भाग नीचा हो तो आग, चोरी और शत्रुओं का खतरा रहेगा। आग्नेय भाग दक्षिण-पश्चिम में नीचा और उत्तर-पश्चिम और उत्तर-पूर्व में ऊंचा होना चाहिए।

28. यदि दक्षिण दिशा में मुख्य प्रवेश द्वार हो, सामने एक गैलरी हो, यदि गैलरी के पूर्व और पश्चिम दिशा में ग्रिल या दीवार न हो, तो पूर्व-पश्चिम दिशा में कम से कम 3 फीट ऊंचाई की दीवार बनानी चाहिए। दिशा, और यातायात उत्तर-दक्षिण से होना चाहिए।

29. यदि दक्षिण दिशा मे लंबी गेलेरी हो और पूर्वी दीवार में ग्रिल न हो तो ग्रिल के नीचे की दीवार की ऊंचाई कम कर देनी चाहिए ताकि आग्नेय कोण उन्नत रहे। ग्रिल की निचली दीवार की चौड़ाई भवन की दीवार की चौड़ाई के बराबर होनी चाहिए।

30. यदि दक्षिण दिशा में गैलरी है तो पश्चिम दीवार में ग्रिल लगाते समय नीचे की दीवार को कम चौड़ा बनाएं। इससे पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम ऊंचा रहेगा। ग्रिल की निचली दीवार घर की चौड़ाई के बराबर होनी चाहिए।


आग्नेय कोण(दिशा)दोष के उपाय

1. दरवाजे के आगे और पीछे हरे रंग के गणेश जी की स्थापना करें।

2. मुख्य पूजा में गणपति की स्थापना करें।

3. प्रवेश द्वार पर वास्तु मंगलकारी यंत्र स्थापित करें।

वायव्य कोण(दिशा)

वायव्य कोण(दिशा)

वायव्य दिशा का स्वामी बटुक, आयुध अंकुश और प्रतिनिधि चंद्रमा है। कालपुरुष के घुटने और हाथ वायव्य दिशा में माने गए हैं।


वायव्य कोण(दिशा)दोष

1. यदि घर का वायव्यकोण खाली या पूरी तरह से सपाट है, तो जातक भाग्यशाली होने पर भी आनंद नहीं उठा सकता है। वयव्य भवन में सबसे बड़ा या सबसे गोलाकार वलय हो तो स्वामी गुप्त रोग से ग्रसित होगा।

2. यदि शयनकक्ष उत्तर-पश्चिम(वायव्यकोण) में है तो जातक का मन सर्दी, बुखार और आर्थिक तंगी के कारण अस्थिर रहेगा। तथा अध्ययन में अनेक बाधाएँ आती हैं।

3. उत्तर-पश्चिम दिशा में किचन हो तो घर की महिलाएं अस्थिर विचारों वाली होती हैं।

4.यदि उत्तर-पश्चिम दिशा में बाग या झाड़ियां हैं, तो घर का स्वामी आध्यात्मिक ऊर्जा का स्वामी, गुप्त शक्तियों का स्वामी और भाग्यशाली होगा।

5. शौचालय वायव्य दिशा में हो तो परिवार के लोगों में थोड़ी शांति और बेचैनी रहती है।

6. यदि उत्तर-वायव्य कोण(उत्तर-पश्चिम) दिशा का स्पर्श हो तो घर के सभी सदस्य नाना प्रकार के व्यासन के शिकार हो जाते हैं।

7. यदि खंड का उत्तर-वायव्यकोण(उत्तर-पश्चिम) उच्च का हो तो वहां का निवासी कोर्ट कचहरी, चोरी और अग्निकांड से पीड़ित होगा तथा बिना पुत्र के जीवन व्यतीत करेगा।

8. वायव्यकोण(उत्तर-पश्चिम) को उत्तर सीमा दिशा से जोड़ दिया जाए तो वायव्यकोण(उत्तर-पश्चिम) दिशा को ढक दिया जाए तो घर और तीसरी संतान पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

9. यदि वायव्य कोण(उत्तर-पश्चिम) इशानकोण की अपेक्षा नीची हो और वहां कुएं और कुएं भी हों तो उस क्षेत्र के निवासियों को अदालती कार्यवाही और बीमारी से जूझना पड़ेगा।

10. यदि उत्तर-पश्चिम ब्लॉक का दरवाजा उत्तर की ओर है, तो यह पूर्व की ओर स्थित स्थिर भवन के पीछे नहीं होना चाहिए।

11. यदि वायव्य कमरे के उत्तर-पश्चिम में चूल्हा है तो घर में मेहमानों का जमावड़ा रहेगा।इस प्रकार खाने-पीने के खर्चे भी बढ़ेंगे।चूल्हा दक्षिण-पूर्व में बनाया जा सकता है।

13. यदि पश्चिम दिशा में दरवाजा हो और निर्माण उत्तर-पूर्व दिशा में किया जाए तो घर का निवासी कर्जदार होगा और मकान नीलाम होने की संभावना बनती है।

14. उत्तर-पश्चिम ब्लॉक में उत्तर दिशा में दरवाजा हो और गेट नीचा हो तो उत्तर-पश्चिम के निचले हिस्से में बार-बार आवाजाही होगी, इसलिए बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं।

15. यदि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में हो, पूर्व दिशा में कोई स्थान खाली न हो, वह दूसरे घर से सटा हुआ हो और यदि उत्तर की तरह दक्षिण में अधिक स्थान खाली हो तो ऐसा घर अनेक समस्याओं का केंद्र बन जाता है।

16.यदि मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में हो, पूर्वी स्थान सीमांकित हो तथा पश्चिम दिशा में ढाल दीर्घा बनी हो तथा प्रथम माल दीर्घा भी ढालू हो तो उस घर के पुरुषों को लकवा मार जाता है। इसी प्रकार यदि घर उत्तरी सीमा से जुड़ा हो और प्रथम संपत्ति में दक्षिण दिशा में झुकी हुई गैलरी हो तो महिलाएं पक्षाघात की शिकार हो जाती हैं।

17. यदि उत्तर में मुख्य द्वार है, पूर्वी सीमा पर पश्चिमी सड़क की दिशा में एक द्वार वाला घर है और दक्षिण-पश्चिम में एक व्यावसायिक स्थान है, तो घर हाथ से चला जाएगा।

18. यदि मुख्य द्वार उत्तर दिशा में हो, उत्तर-पश्चिम ऊंचा हो, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम कटा हुआ हो तो ऐसे घर में पिता-पुत्र, पति-पत्नी के बीच प्रतिशोध की भावना बढ़ती है। , देवर और सास को रोज मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी। ऐसा घर अक्सर आग की वस्तु बन जाता है। ऐसे में जान की कुर्बानी भी देनी पड़ेगी।

19. यदि मुख्य द्वार उत्तर में हो और पूर्व-उत्तरी दीवारें घुमावदार हों तो ऐसे घर में विकलांग बच्चे पैदा होंगे।

20. वायव्य कोण उच्च या अस्पष्ट(ढका हुवा) हो तो घर का निवासी भ्रम का शिकार होकर आत्महत्या कर लेता है।

21. यदि घर के आंगन में उत्तर-पश्चिम, उत्तर से नीचा और दक्षिण-पश्चिम और आज्ञा से ऊंचा हो, तो शत्रुओं की संख्या बढ़ेगी और स्त्री रोगों से पीड़ित होगी। भय भी होता है।


वायव्य कोण(दोष)

1.इस दिशा दोष के लिए चंद्र यंत्र की स्थापना करें।

2. दरवाजे पर सफेद गणपति और सामने चांदी का श्रीयंत्र रखें।

3. दीवारों पर क्रीम कलर लगाएं।

नैऋत्य दिशा

नैऋत्य दिशा

दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) दिशा का स्वामी राहु है और प्रतिनिधि राहु-केतु है। दक्षिण-पश्चिम दिशा में कालपुरुष को दोनों पैरों की एड़ी और नितम्ब माना गया है।


नैऋत्य दिशा

1.नैऋत्य कोण हमेशा भरा होना चाहिए। लेकिन यदि खाली स्थान हो और जन्म कुण्डली में राहु अकेला हो तो गृहस्थ का खजाना खाली होगा।

2.यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा में कुआं है, तो यह राहु चंद्रमा की युति का प्रभाव है। ऐसे में गृहस्थ बेवजह के डर और मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है।

3. मकान पुराना हो, दक्षिण-पश्चिम दिशा में दीवार टूटी या फटी हो और वहां कुआं हो, तो घर में किसी न किसी व्यक्ति को भूत-प्रेत से पीड़ा होती है।

4. दक्षिण-पश्चिम दिशा में किचन हो तो पति-पत्नी के बीच हमेशा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। एक महिला को गैस हो जाती है। शयनकक्ष है तो गृह स्वामी सुख चाहते हैं..

5. यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा में बाथरूम हो तो घर के स्वामी की कुंडली में मंगल और राहु का बुरा प्रभाव पड़ता है। घर के स्वामी को प्रतिकूल परिस्थितियों और दुखों का सामना करना पड़ता है।

6. नैऋत्य कोण के प्रत्येक कोण को पूरे घर में एक स्थान से संतुलित कर लेना चाहिए अन्यथा अशुभ परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

7. दक्षिण-नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) दिशा होने से घर की महिलाओं को भयंकर रोग होंगे। इसके साथ ही नैऋत्य कोण में कुआं हो तो आत्महत्या, पुराना रोग या मृत्यु होने की संभावना रहती है।

8. पश्चिम नैऋत्य दिशा में कुआं हो और नैर्ऋत्य दिशा में कुआं हो तो उपरोक्त परिणाम पुरुषों पर लागू होता है।

9. नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) दक्षिण से उच्च या पश्चिम से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। दक्षिण-नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) का बढ़ा होना स्त्रियों के लिए, पश्चिम-नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) का बढ़ना पुरुषों के लिए हानिकारक होता है।

10.बाहर की दीवारों से या दक्षिण-नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) और पश्चिम-नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम) से होकर जाने पर अपयश, कारावास, दुर्घटना, हत्या या पक्षाघात के योग होंगे। यह गेट दुश्मन का ठिकाना है।

11. यदि उत्तर पूर्व की तुलना में नीचा हो और कुआं या गड्ढा हो या इशान(उत्तर पूर्व) से दक्षिण पश्चिम की ओर पानी का बहाव हो तो शत्रु की वृद्धि होती है।

13 दक्षिण दिशा की गैलरी के कारण महिलाओं को और पश्चिम की ओर गैलरी के कारण पुरुषों को आर्थिक परेशानी होती है और पक्षाघात का शिकार होना पड़ता है।

14. द्वार पश्चिम या दक्षिण दिशा में एक दिशा में होना चाहिए यदि घर या बाहरी दीवार में दोनों दिशाओं में दरवाजे हों तो शत्रु वृद्धि होगी। साथ ही कर्ज का बोझ भी बढ़ सकता है। लेकिन यदि पूर्व-उत्तर में द्वार है तो वह दक्षिण-पश्चिम में भी हो सकता है।

15. यदि दक्षिण-पश्विम भाग में जल की अधिकता हो जैसे दक्षिण-पश्चिम तथा उत्तर-पूर्व में तो स्त्री और पश्चिम भाग में हो तो अल्पकाल में ही पुरुष गंभीर रोगों का शिकार हो जाता है।घर आश्रित हो जाता है। .

16. दक्षिण-पश्चिम खाली होना चाहिए, उत्तर-पूर्व नहीं होना चाहिए और उत्तर-पूर्व की सीमा नहीं होनी चाहिए

17. दक्षिण-पश्चिम ब्लॉक वास्तु विकृतियों के साथ ऊपर दिखाए गए सभी या कुछ दोषों के होते हुए भी शुभ माना जाता है। कारण यह है कि आस-पास के घर उत्तर पूर्व की ओर गायब हो जाते हैं। या उत्तर पूर्व की सड़कों के कारण जगह का उत्तर पूर्व कटा हुआ है। आर्थिक दृष्टि से संपन्न होते हुए भी उनमें श्रेष्ठ मानवीय गुणों का सर्वथा अभाव रहेगा। यदि हत्यारों, हत्या के शिकार लोगों या दुघर्टनाओं के अपराधियों के घरों को अस्वीकार्य स्थितियों में देखा जाए, तो उपरोक्त दोष स्पष्ट होते हैं।

18.दक्षिण-पश्चिम तल का उपयोग शयन कक्ष या भंडार कक्ष के रूप में किया जाना चाहिए, लेकिन स्नानघर या शौचालय के रूप में कभी नहीं। दक्षिण-पश्चिम में हर कमरे और गैलरी में नैऋत्य नीचा हो तो धन की हानि या भयंकर रोग से पीडि़त होता है।

19. दक्षिण-पश्चिम दिशा में कुआं या गड्ढा हो तो घर के स्त्री-पुरुष गंभीर रोगों से पीड़ित रहेंगे। दक्षिण-पश्चिम दिशा का जल यदि दक्षिण चैनल से निकले तो स्त्रियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और यदि पश्चिम चैनल से निकलता है तो पुरुषों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। नैऋत्य कोण ऊंचा हो तो शत्रु, कचहरी और कर्ज से संबंधित कष्ट उठाने पड़ते हैं।


नैऋत्य दिशा के उपाय

1.इस दिशा दोष के लिए राहु का यंत्र स्थापित करें।

2. मुख्य द्वार पर भूरे या मिश्रित रंग के गणपति की प्रतिष्ठा करें।

3. इस संबंध में एक सक्षम और विद्वान वास्तुकार की सलाह आवश्यक है।