
कालसर्प योग, सर्प योग, नाग दोष, मंगल दोष,पंच महापुरुष योग, शापित योग, केमद्रम योग, चांडाल योग, विष योग , विलक्षण योग,अंगारक योग,राज योग का योग, उच्च अधिकारी योग, धनवन योग, पिता का धन प्राप्ति योग, गरीगी के योग, अचानक मिलने वाला धन के योग, ससुर पक्ष से मिलने वाला धन के योग, जमीनदार योग, विध्या के योग, दु:खमय जिवन, अधीक कन्या योग, ग्रहण योग(चंद्र या सूर्य), धन योग, अल्प आयु योग, वैधव्य योग(विधवा योग), षडयंत्र योग, दूर योग आदी योगो को इस लेख मे बताया गया है । जो ज्योतिष जानने को इच्छुक जातको के ज्ञान मे वृद्धी करेगा और इस मे बताये गये उपायो से लाभ भी ले शकेंगे ।
आभार
राज योग का योग
राज योग का योग
नियम 1. यदि चार ग्रह उच्चस्थ या मूल त्रिकोण में हों तो वह प्रधान या राज्यपाल बन जाता है।
नियम 2. यदि शुक्र, बुध, बृहस्पति केंद्र में हों और मंगल 10वें स्थान पर उच्च का हो, तो वह उच्च अधिकारी बन जाता है।
नियम 3. मेष राशि में चंद्रमा, मंगल हो तो वह करोड़पति बन जाता है और संसद सदस्य बन जाता है।
नियम 4. यदि लग्न मेष राशि का हो और चंद्रमा और शनि धनु में, सूर्य सिंह में और बृहस्पति वृष राशि में हो, तो यह एक उच्च शक्ति बन जाता है।
नियम 5. यदि छठे भाव में सूर्य, चतुर्थ भाव में शुक्र, 10 मई में बृहस्पति, 7 मई में बुध कर्क लग्न में हो, तो वह केंद्र सरकार में एक उच्च अधिकारी बन जाता है।
नियम 6. यदि सूर्य कर्क लग्न में गुरु के साथ मंगल के साथ दसवें भाव में हो तो वह नेता बनता है।
उच्च अधिकारी योग
उच्च अधिकारी योग
नियम 1. यदि सभी ग्रह लग्न में हों और पाप ग्रह की दृष्टि न हो, तो उसे उच्च दर्जा प्राप्त होता है
नियम 2. लग्नेश स्वाग्रही हो और उस पर मित्र ग्रह की दृष्टि हो तो वह उच्च का होता है।
यदि पूर्ण चन्द्रमा गुरु के साथ 3/6/10/या 11 भावमे होने पर उच्च अधिकारी योग बनाता है
नियम 4. यदि लग्न में शनि, 7वें बृहस्पति और बृहस्पति पर शुक्र की दृष्टि हो, तो वह सरकार में एक उच्च अधिकारी बन जाता है।
नियम 5. सूर्य, चंद्रमा और शुक्र की युति और उस पर गुरु की दृष्टि होने से वह शक्ति प्राप्त करेगा और प्रचुर धन संचय करेगा।
नियम 6. यदि नौवें भाव में तीन ग्रह उच्च या बली हों, तो राजनीतिज्ञ का जन्म होता है।
नियम 7. यदि उच्च का गुरु केंद्र में हो और शुक्र दसवें भाव में हो तो वह एक सफल राजनीतिज्ञ बन जाता है
धनवन योग
धनवन योग
नियम 1. यदि किसी का जन्म रात में हुआ हो और चंद्रमा पर शुक्र की दृष्टि हो।
नियम 2. यदि चतुर्थेश और नवमेश की युति हो।
नियम 3. यदि कर्मेश और लाभेश का गठबंधन है।
नियम 4. यदि चतुर्थेश और दशमेश की युति 2/4/5 या 7 में भाव में हो।
नियम 5. यदि द्वितेश और पंचमेश का योग हो।
नियम 6. यदि लग्नेश चतुर्थेश की युति हो।
नियम 7. यदि चतुर्थेश और लाभेश संयुक्त हैं।
नियम 8. यदि लाभेश और धनेश का गठबंधन है।
नियम 9. यदि लग्नेश और लाभेश संयुक्त हैं।
नियम 10. यदि लग्नेश और धनेश का गठबंधन है।
नियम 11. यदि लग्नेश और पंचमेश की युति हो।
पिता का धन प्राप्ति योग
पिता का धन प्रप्य योग
नियम 1. यदि नवमेश और लाभेश की युति हो।
नियम 2. यदि नवमेश की दृष्टि द्वितेश पर हो।
नियम 3. धनेश स्वाघरी होना चाहिए न कि लाभेश।
नियम 4. यदि कोई ग्रह द्वितीय उच्च में हो।
नियम 5. यदि दूसरे में केवल केतु हो।
नियम 6. दूसरे भावमे लाभेश/ नवमेश या चतुर्थेश होने पर ।
नियम 7. दूसरे भावमे केवल लाभेश होने पर ।
नियम 8. दित्येष उच्च होकर लाभ स्थानमे होने पर ।
नियम 9. द्वितयश उच्च होकर नवमे भावमे रहने पर ।
नियम 10. धनेश और नवमेश पंचमभवनमें रहने पर ।
गरीब के योग
गरीगी के योग
નિયમ 1. यदी नवमेश और छष्ठेश की युति होती हो।
નિયમ 2. यदी व्ययेश और धनेश की युति होती हो ।
નિયમ 3. यदी व्ययेश और कर्मेश की युतिहोती हो ।
નિયમ 4. यदी छष्ठेश और पंचमेश की युति होती हो ।
નિયમ 5. यदी चतुर्थेश और तृत्येश की युति होति हो ।
નિયમ 6. यदी छष्ठेश और लाभेश की युति होती हो ।
નિયમ 7. यदी छष्ठेश और व्ययेश की युति होती हो ।
નિયમ 8. यदी अष्टमेश और व्ययेश की युति होती हो ।
નિયમ 9. यदी छष्ठेश और सप्तमेश की युति होती हो।
નિયમ 10. यदी व्ययेश लग्न यानी प्रथम भाव मे हो ।
अचानक मिलने वाला धन के योग
अचानक मिलने वाला धन के योग
નિયમ 1. चंद्र पंचमभावमे हो और उच पर शुक्र की द्रष्टी हो ।
નિયમ 2. धनेश और लाभेश दोनो शुभ राशीमे हो ।
નિયમ 3. लाभेश और धनेश चतुर्थ(४) भाव मे हो ।
નિયમ 4. लग्नेश शु ग्रह का हो और दुसरे भावमे बेठा हो ।
નિયમ 5. धने अष्टम(८) मे हो ।
નિયમ 6. लग्नमे लाभेश, लग्नेश दुसरे(२) और धने लाभा(११)भावमे हो।
ससुर पक्ष से मिलने वाला धन के योग
ससुर पक्ष से मिलने वाला धन के योग
નિયમ 1. सप्तमेश और धनेश की युति हो और उन पर शुक्र की द्रष्टी हो।
નિયમ 2. चतुर्थेश सप्तममे(७) और शुक्र चतुर्थमे (४) हो।
નિયમ 3. सप्तमेश और नवमेश की युति हो।
નિયમ 4. बलशाली दित्येश सप्तममे हो और दित्येश पर शुक्र की द्रष्टी हो।
जमीनदार योग
जमीनदार योग
નિયમ 1. चतुर्थेश और दशमेश का परिवर्तन होने पर ।
નિયમ 2. चतुर्थेशदूसरा या ग्यारवे भाव मे होने पर ।
નિયમ 3. पंचमेश प्रथम भावमे रहेना पर
નિયમ 4.लग्न स्थाम मे सप्तमेश, नवमेश या लाभेश होने पर ।
विध्या के योग
विध्या के योग
नियम 1. पंचमेश बुध/गुरू या शुक्र हो और पंचम(५) या सप्तम(७) या नवम(९) या फिर दशम(१०) भावमे रहने पर ।
नियम 2. चतुर्थेश अपनी राशी यानी स्वगृहि हो।
नियम 3. बृहस्पति पंचममे(५) हो।
नियम 4. चतुर्थेश ६/८ या १२ वे भावमे न हो ।
नियम 5. बुद्ध कन्या राशीमे हो ।
नियम 6. गुरू चतुर्थ (४)मे,बुध पंचम(५)मे, मंगल नवमे(९) या दशमे(१०) इन भावोमे हो।
नियम 7. कर्मेश प्रथम भावमे हो।
नियम 8. लाभेश स्वगृहि हो(अपनी राशीमे)।
नियम 9. पंचमेश अपनी राशीमे होकर लगनेम्या चतुर्थमे या फीर पंचममे हो।
नियम 10. पंचमेश व्ययेश हो(केवल एक ही ग्रह)।
नियम 11. मंगल दूसरे भावमे शुभ ग्रह से द्रष्ट हो।
नियम 12. मंगल-शुक्र-शनि, सूर्यसे पंचम(५) भावमे होने पर अंग्रेजी षाभा पर प्रभुत्व होता है।
पंच महापुरुष योग
पंच महापुरुष योग
नियम 1. यदी केन्द्र स्थान पर स्वराशी या उच्चराशीमे ग्रह हो ..।
☞ यदी જો मंगल हो तो रुचक योग बनाता है। फल:-अपनी महनेत से समाजा मे मान-प्रतिष्ठा कमाता है।
☞ यदि बुध हो तो भद्रयोग बनता है। फल:-अपनी वानी के माध्यम से मान-प्रतिष्ठा कमाता।
☞ यदि शुक्र हो तो मालव्ययोग बनता है। फल:- अपनी वाकचातुर्त्य के माध्यम से मान-प्रतिष्ठा कमाता।
☞ यदि गुरु हो तो हंसयोग बनता है। फल:-अपनी वाकचातुर्य्थी और ज्ञानके माध्यम से मान-प्रतिष्ठा कमाता।
☞ यदि शनि हो तो शशयोग बनता है।फल:-अपनी महेनत से व्यवसाय या बडा बिजनेश करता है।
दु:खमय जिवन
दु:खमय जिवन
नियम 1. चतुर्थमे (४) निच्च राशी कई सूर्य या फेर मंगल हो।
नियम 2. अष्टमेश यदी ग्यारवे(११)भावमे हो।
नियम 3.लगनभावमे पापग्रह हो।
नियम 4. शनि लग्नमे राहु आठवे(८) और मंगल छष्ठे(६) भावमे हो ।
नियम 5.चन्द्र पाप ग्रह के बिसमे हो।
नियम 6. लग्नेश बारवे हो, कर्म यानी दशमे पापग्रह के साथ सूर्य या चन्द्र या दोनो बेठे हो।
अधीक कन्या योग
अधीक कन्या योग
नियम 1. यदी पंचमेश अष्टम स्थानमे हो।
नियम 2. लाभ स्थाम मे बु.शु. या फीर चं. हो।
नियम 3.यदी शुक्र पंचमभाव मे हो।
नियम 4. मेश या वृषभ या फीर कर्क पंचम राशी हो और पंचममे केतु हो।
नियम 5. पंचमेश और तृत्येश दोनो निच्च राशी मे हो।
विवाह के बारेमे
विवाह के बारेमे
नियम 1. सप्तम भाव मे शुभ ग्रह हो और सप्तमेश बलशाली हो।
नियम 2. शुक्र अपनी राशी वृषभ या तुला या फीर कन्या मे हो।
नियम 3. धनेश और सप्तमेश केन्द्र स्थान मे हो।
नियम 4. लग्नेश लग्न मे या दूसरे भाव मे हो।
नियम 5. सप्तम भाव मए चं+शु. की युति हो।
नियम 6. लगन से सप्तम मे शुभ ग्रह हो।
नियम 7. सप्तमेश दूसरे भावमे शुभ ग्रह के साथ हो।
शादी(विवाह)मे बाधा या न होने के योग
शादी(विवाह)मे बाधा या न होने के योग
नियम 1. सप्तमेश ६ /८/११ या १२ वे भावमे शुभ ग्रह की द्रष्टी के बिना हो।
नियम 2. छठ्ठेश , अष्टमेश और व्ययेश यह तीनो सप्तम भाव मे हो।
नियम 3. शुक्रसप्तममे शनि, मंगल के साथ हो।
नियम 4. लग्न,सप्तम और व्यय यह तीनो स्थानो मे पापग्रह हो।
नियम 5. दो पाप ग्रह सप्तमभाव और व्ययभाव और साथ मए चंद्र पंचमभाव मे हो।
नियम 6. सप्तमभाव पर अशुभग्रह का प्रभाव हो।
नियम 7. सप्तम भावमे केतु, शुक्र द्रष्ट हो।
नियम 8. शुक्र/मंगल पंचममे या सप्तममे या फीर नवम मे हो।
रोगीष्ट पति या पन्ति के योग
रोगीष्ट पति या पन्ति के योग
नियम 1.लग्न मे शनि,मंगल या केतु हो।
नियम 2. सप्तमेश अष्टमभाव या व्यय भाव मे हो।
नियम 3. सप्तमेश और धनेश अशुभ ग्रह के साथ युति मे हो।
नियम 4. सप्तम स्थानमे निच्च चंद्र हो।
ग्रहण योग(चंद्र या सूर्य)
ग्रहण योग(चंद्र या सूर्य)
1. सूर्य यदी राहु या केतु के साथ युति संबंध बना रहा हो।
2. चंद्र और राहुया केतु के साथ युति संबंध बना रहा हो।
उपाय
1. सूर्य के २८००० जप कराना चाहिए।
2. चंद्र के ४४००० जप कराना चाहिए।
3. राहु के ७२००० जप कराना चाहिए।
4. केतु के १७००० जप कराना चाहिए।
5. सूर्य को नित्य जल अर्पित करे।
6.चंद्र के जप नित्यदिन करे और चंद्र के दर्शन करे।
शपित दोष के योग
शापित योग
1. शनि और राहु की युति या द्रष्टी या प्रतियुति हो।
2. सिंह राशी या कर्क राशी या या कुभ या मकर राशी मए राहु या केतु हो।
3. सूर्य के साथ राहु या केतु हो।
4.चंद्र के साथ राहु आ केतु हो।
केमद्रम योग
केमद्रम योग
1. मंगल,बुध ,गुरू,शुक्र या शनि इनमेसे कोइभी ग्रह चंद्र से दूसरे या बारवे स्थान पर कोइ भी ग्रह ना हो तो यह गोय बनता है।
2. वद की अष्टमीसे सुद की दुज तक चंद्र क्षिण होने कारन यह योग बनता है।
3.चंद्र से अष्टममे गुरू सकट योग बनता है।
4. चंद्र पर शुभ ग्रहो कई द्र्ष्टी होने से जातक भला होता है उसको सफेद वस्तुए दान करनी चाहिए।
1. यदि चंद्र के साथ किसी भी ग्रह की युति हो।
2. यदि लग्न से केंद्र् स्थान मे कीसी भी ग्रह का होना।
3. यदि चंद्र से केंद्र मे कीसी भी ग्रहका होना ।
इस तीन नियम यदी लागु पडते है तो यह योग नाबुद होता है।
निवाराण
1. चंद्र कोबलशाली करने के लिए मोती धारण करना चाहिए।
2.सोमवार के दिन शिवलिंग पर जल – दुध से अभिषेक करना चाहिए।
3. नित्य सात्दिन महामृत्युंजय का जाप करना चाहिए।
नोंध:- योग्य ज्योतिषी की सलाह लेनी चाहिए।
चांडाल योग
चांडाल योग
1. गुरू और राहु की युति से यह योग का निर्माण होता है।
उपाय
1. अपने कपाल पर केसर या हल्दी या चंदन कआ तिलक करे।
2. गुरु के मंत्र जाप करे।
૩.बृहष्पति दिन गुरु के यंत्रकी विधि विधान से पूजा करे और बुधवार के दिन राहु यंत्रकीविधि विधान से पूजा करे।
अंगारक योग
अंगारक योग
1. सूर्य +मंगल या मंगल+राहु की युति होने पर यह योगा कआ निर्माण होता है।
उपाय
मंगल के ४००० पज करे
सूर्य के २८००० पज करे
राहु के ७२००० पज करे
नित्य दिन हनुमानजी कई आरधना करे।
मंगवार के दिन लाल गाय को गुड और रोटी दे।
नित्य पक्षाओको दाना डाले।
धन योग
धन योग
☞ यदि दूसरे भावा मए कोइ भी ग्रह उच्च का हो।
☞ यदिदुसरे भावमे धनेश अपनी राशी मे हो।
☞ यदि दुसरे भावा का स्वामी यानि धनेश पंचम भाव या नवमभाव या फीर एकादश भावा मे हो।
☞ यदि ५,९,या ११ इस भावा के स्वामी अपनी राशी मे हो ।
☞ यदि ५,९, या फेर ११ वे भावा कआ स्वामी दूसरे भाव के साथ परिवर्तन योग बनाते हो।
☞ यदि दूसरे या ग्यारवे भाव या भावेश के साथ राहु की युति हो ने से विदेश से या विदेध लाभ होता है।
विष योग
विष योग
1. शनि महाराज और चंद्रदेव एक ही राशीमे हो।
2. जन्म कुंडलीमे एक साथ केंद्र्मे शनि+चंद्र हो।
3. शनि की द्र्ष्टी चंद्र पर हो।.(3/ 7/10)
4. चंद्र पुष्य नक्षत्र मे और शनि श्रेवण नक्षत्र मे हो।
निचे बताये सिंद्धातो से यह योग नाबुद होता है
1. शनि या चंद्र शुभत्व मिलता हो।
2. शनि मकर राशी और चंद्र कर्क राशी मे हो।
3. शनि कर्क और चंद्र मकर या कुंभ राशीमे हो।
4. शनि और चंद्र की युति मे शनि स्वगृहि हो।
आपके जन्माक्षरमे यग योग बन राहा है तो अपनी राशी या अपने लग्न की राशी पर कलिक करे
लक्ष्मीयोग
आ योग मंगल और चंद्र की युति से यह योग बनता है।
आ युति से मा लक्ष्मी की असिम कृपा रहती है।
विलक्षण योग
विलक्षण योग
जन्म कुंडली मे चंद्र से बारवी राशी का स्वामी चंद्र से दूसरे भाव मे होने से यह योग बनताहै।
फल:- मानहानि,प्रतिष्ठाभंग,सेवा मे से हटाना अपमृत्यु,दुख्म व्यवसाय मे हाँइ उच्च होदे परसे कलंकीत होना
कालसर्प योग
(1) अनंतक कालसर्प योग
जब लग्न मे राहु और सप्तमा मे केतु हो ।
फल:-
यह योग होने सए सीर पिडा,शरीर पिडा,अपशय की बिमारी,मानशिक अशांति दांपत्य जिवन मे दुख एसी घटनाए होने की संभावनाए रहती है।
(2)वासुकी कालसर्प योग :-
जब दूसरे भावा मए राह और आठवे भाव मे केतु हो।
फल:-
इस योग से धनहानि, अचानक खर्चे,ऋण बंधन, वाणी मे कटुता, परिवार मे झगडे
(3)अऐरावत कालसर्प योग :-
जब तिसरे भावा मे राहु और नववे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से साहस और पराक्रमल की क्षमता से काल के साथ खेल के सिद्धि मिलती है लेकीन भाइ-बह्न या मित्र से भाग्योदय मे अवरोध होता है।
(4) तक्षक कालसर्प योग:-
जब चोथे भावा मे राहु और दशम भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से स्थावर मिलकाके प्रश्न, माता-भूमि के साथे लेन-देन कम. निरंतर
मानशिक दबाव,हदय की पिडा का भय्।
(5) कर्कट कालसर्प योग:-
यदि पंचम भावम मे राहु और ग्यारवे भाव मे केतु हो।
फल:-
इस योग से विद्या और संतान की उणप, संतान हो तो तोफानी, अचानकद्रव्य लाभ
(6) धनंजय(महापद्म)कालसर्प योग :-
यदि छठ्ठे भावमे राहु और बारवे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से जीवना मे कभी तरक्के तो कभी निक्शान,शत्रु विजय ,रोग प्रतिकारक शक्ति,चरित्र शंदेहयुक्त
(7) कालिय कालसर्पा योग :-
जब सातवे भावमे राहु और प्रथम भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से सभी तरह से असफलताए,हताशा ,दुखदाइ
दांपत्य जीवन,छुटाछेडा ।
(8) मनिनाग कालसर्प योग :-
जब आठवे भावमे राहु और दूसरे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग सए अकस्मात,रोग,लम्बी बिमारी,दुर्घटनाए,पैतृक संपत्ति का नाश
(9) आपूरण(शंखचूड) कालसर्प योग:-
जब नववे राहु और त्रीसरे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से सभी क्षेत्रो से डरका अनुभव, संघर्ष के साथ अपना व्यक्तित्व प्राप्त करे,
પ્રાપ્ત કરે, गुढ विद्याओ की सहज प्राप्र्ति.
(10) पिंजत (घातक) कालसर्प योग:-
जब दशम भावमे राहु और चोथे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से माता-पिता से दूर रहना पडता हो,व्यवइक क्षेत्रो मे अंतराय जानना।
(11) एलाप (विषधर)कालसर्प योग:-
जब ग्यारवे भावमे राहु और पंचम भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से जिंदा भाइओ कए साथ लडाइ, सरलता से लाभ
(12) वामनकाल कालसर्प योग:-
जब बारवे भावमे राहु और छठ्ठे भावमे केतु हो।
फल:-
इस योग से जीवन एक तकलीफ एसा महसुस होना,अपने वतन से दूर भटकना अपनो से गैर
आमदनी से खर्चा ज्यादा नेत्र से पिडा बदनामी गुप्त शत्रुता
निचे दिए सिद्धांतो से यह योग निष्फल होता है
1. यदी राहु या केतु के साथ कोइ भी ग्रह हो और उस ग्रह के अंश राहु या केतु से ज्यादा हो तब ।
2. यदि राहु को राशीबल या स्थानबल मिलता हो तब्।
3. यदि कुंदलीमे कोइ भी ग्रह उच्च या स्वगृहि हो तब्।
4. यदि कोइभी ग्रह राहु और केती की सक्षा से बहार हो तब्।
5. यदी गुरू कुंडली मे केंद्रस्थ हो तब्।.
6. यदी केंद्र स्थान मे मंगल अपनी राशी मे या मकर राशीमे हो तब।
7. जन्म कुंडली और चंद्र कुंडली दोनो मे हो ।
8. शुक्र दूसरे भावमे या बारवे भावमे होने से यह योग कमजोर बनता है।
सर्प योग
सर्प योग:
नियम.1 लग्नकुंडली कए चारो केद्र मे पाप ग्रह हो एकभी शुभ ग्रह ना हो तब्।
नियम.2 लग्न कुंडलीमे पंचम भावमे मेषा का राहु हो तब्।
नियम .3 लग्ना कुंदली कए पंचम भावमे वृश्विकाराहु हो तब।
नियम.4 लग्न कुंडली के आठवे भावा मे यदी सूर्य और चंद्र हो तब।
फल
सफलताए मिलती नही है, बदनाम होने का भय रहता है, परिवारा मे झगडे, कमाया हुवा धन अचानक गायब होना, यादि
नाग दोष
नाग दोष :
नियम.1 लग्नकुंडली के प्रथम भावमे चंद्र के साथ राहु या केतु या फीर शुक्र के साथ राहु या केतु हो तब।
नियम .2 प्रतहम ,द्वित्य,पंचम,सप्तम और अष्टमइसा भावमे यदी राहु या केतु हो तब।
फल :
विवाह मे देरी या होता ही नही, शादी मे तलाक, गर्भपात की संभावए, स्वप्नमेसाप दिखना मानशिकविकार, भयंकर अकस्मात,दवाखाने की मुलाके ज्यादा आदि।
उपाय:
1 . छठ्ठ के दिन सह्परिवार पूजा करे बाद मए सान करे
2.नियम मुजब भगवानशिवजी की पूजाकरे और शिवजी की शिवलिंग पर दुध अवम शलाभिषेक करे।
૩. नित्य १०८ बार ओम नम:शिवाय का जाप करे।
4. मस्तक पर चंदन का तिलक करे।
5. मंगालवार और शनिवार के दिन शेषबागा की पूजा १८ सप्ताह करे।
6. घर मे मयूर का पंख रखे।
7. ४२ बुधवार जरूरियात मंदको मग दाल दान करे।
8. एकादशी,शिवरात्री,गोकुल अष्टमी जेसे तहेवारो के दिन किसी भी प्रकारा की अपने घर मे पूजा ना करे ।
9. किसी भी ना मंदिर के दर्शन या नमन ना करे।
10. गर्भवती स्त्री को नागमंदिर के दर्शन ना करे।
मंगल दोष
मंगल दोष
जब कुंडली मे १।४।७।८।१२ इन भावोमे मंगल हो तब यह दोष मिलता है।
उपाय
1.पिपला कओ जल चढाए।
2 . मंगलग्रह के जप करे। .
3.नित्य हनुमानजी की चालिसा करे।
अल्प आयु योग
अल्प आयु योग
1. कुंडलीमे चंद्र्मा पापा ग्रह के साथ ६।८।१२ इन भावोमे हो तब्।
2. कुंडलीमे लग्नेश पर पापा ग्रह की द्रष्टी हो तब्।
उपाय :
1.नित्य हनुमानजी कई चालिसा करे।
2. नित्य महामृत्युंजय का जाप करे।
वैधव्य योग(विधवा योग)
वैधव्य योग(विधवा योग)
कुंडलीमे ७ भावमे मंगल और इस मंगल पर शनि की द्रष्टीहो तब्।(३-१०-७)/p>
उपाय:
1. शादि से पहलेकुंभ विवाह करनाचाहिए।
2. शादि हो गइ हो तो मंगल और शनि ग्रह के उपाय अवश्य करे।
दारिद्रय योग
दारिद्रय योग :
1. कुंडलीमे ११ वे भाव का स्वामी ६। ८। १२ वे भावमे हो तब।
उपाय:
1. माता लक्ष्मीजी की उपाशना करे श्री सुकताकआ पाठ करे।
2. खराब कार्य ना करे।
षडयंत्र योग
षडयंत्र योग
लग्नेश जब ८ वे भावमे और उसके साथ कोइ भी शुभ ग्रह न हो तब यह योग बनता है।
उपाय :
1. नित्य हनुमाजी की चालीसा करे।
2.नित्य शिव परिवार की पूजा करे।
भावनाश योग
भावनाशयोग
कुंडली के कीसीभी भावका स्वामी ६ । ८ । १२ वे इस भावमे हो तब यह योग बनता है।
उपाय:
1. जिस ग्रह से यह योग बनता हऐ उस ग्रह के दिन हनुमाजी की पूजा-अर्चना या पाठ करने चाहिए।
दूर योग
दूर योग
कुंदली कए दशमेश जब ६।८।१२ इन भावमे हो तब यह योग बनता हऐ।
उपाय:
1.श्री गणेशजी की पूजा करे।
2. दशमेशकी पूजा करे या जाप कअरे।